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भारतीय दर्शनों का संक्षिप्त परिचय | १६ एक दूसरा विभाग भी है-हीनयान और महायान । यान का अर्थ हैमार्ग । छोटा रास्ता एवं बड़ा रास्ता। अनुदार मार्ग और उदार मार्ग । आचारप्रधान और ज्ञानप्रधान । इस प्रकार बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म निरन्तर विभक्त होता रहा है । जनश्र ति के अनुसार बौद्ध धर्म अष्टादश निकायों में विभक्त हो गया। थेरावाद और सर्वास्तिवाद हीनयान मार्ग के हैं और माध्यमिक, योगाचार तथा दिङ नाग की सम्प्रदाय महायान मार्ग के हैं। दिङ नाग को सम्प्रदाय को न्यायवादी भी कहा जाता है। वैभाषिक एवं सौत्रान्तिक सम्प्रदायों का और उनके सिद्धान्तों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैवैभाषिक सम्प्रदाय
अभिधर्मकोश, बौद्धदर्शन का एक महत्वपूर्ण शास्त्र है, उसकी टीका या व्याख्या का नाम विभाषा अथवा महाविभाषा है, जिसके कारण सर्वास्तिवादी वैभाषिक कहे जाते हैं। अभिधर्मकोश वसुबन्धु का महान् ग्रन्थ है. जिसका पठन-पाठन सर्वत्र होता है। स्वयं वसुबन्धु ने इस पर एक टीका लिखी है । दूसरी टीका है यशोमित्र की । सौत्रान्तिक सम्प्रदाय
विभाषा का अर्थ है, टीका। अभिधर्म एक प्रकार से सूत्रपिटक की टीका के रूप में है। क्योंकि बुद्ध का मूल उपदेश सूत्रपिटक में ही पाया जाता है । अतः जब एक सम्प्रदाय ने विभाषा अर्थात् टीका को आधार मानने का विरोध कर, यह कहा कि हमें अपने सिद्धान्तों को समझने के लिए 'सूत्र' तक पहुँचना चाहिए, तो वह सम्प्रदाय सौत्रान्तिक कहा गया । यह सम्प्रदाय भी बौद्ध परम्परा में अपना विशेष स्थान रखता है। कुछ विद्वान् दिङ नाग सम्प्रदाय को ही सौत्रान्तिक कहते हैं। मूल सूत्रपिटक को मानने के कारण ही इसका नाम सौत्रान्तिक सम्प्रदाय पड़ा है। माध्यमिक सम्प्रदाय
कालक्रम की दृष्टि से सर्वास्तिवाद के बाद नागार्जुन का माध्यमिक दर्शन अथवा शून्यवाद आता है। शून्यवाद के साथ ही बौद्ध इतिहास में, महायान का युग प्रारम्भ हो जाता है । महायान सूत्र एवं वैपुल्य सूत्र, महायान सम्प्रदाय का आधारभूत ग्रन्थ है । नागार्जुन का मूल ग्रन्थ जिसमें शून्यवाद की स्थापना की है, माध्यमिक सूत्र अथवा माध्यमिककारिका है। इस पर स्वयं नागार्जुन ने 'अकुतोभया' टीका की है । चन्द्रकीति की प्रसन्न
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