________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारतीय दर्शनों का संक्षिप्त परिचय | २७
वेद से सम्बन्ध
यद्यपि वेदों से सीधा सम्बन्ध केवल मीमांसा और वेदान्त का है, क्योंकि वेद के दो भाग हैं - कर्म और ज्ञान । मीमांसा में कर्म का विचार किया गया है, वेदान्त में ज्ञान पर विचार किया गया है, एक तीसरा विभाग भी है - उपासना, इसमें से भक्ति मार्ग का विकास किया गया है, तथापि सांख्य और योग भी किसी रूप में वेद से संबद्ध रहे हैं, न्याय और वैशेषिक सिद्धान्त वेद से दूर होकर भी वेदों को ईश्वरवाणी के रूप में स्वीकार करते हैं ।
न्याय और वैशेषिक दर्शन
न्याय और वैशेषिक दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं । न्याय में प्रधानतया प्रमाण का सूक्ष्म विवेचन किया गया है। वैशेषिक में मुख्यतया प्रमेय का वर्णन किया है । प्रमाण के बिना प्रमेय की सिद्धि नहीं होती । न्याय का अर्थ है कि विभिन्न प्रमाणों के द्वारा अर्थ की परीक्षा करना । न्याय भाव्य का कथन है- 'प्रमाणैरर्थ - परीक्षणं न्याय: ।' प्रमाणों का विस्तार से प्रतिपादन करने से न्याय - शास्त्र को प्रमाण - शास्त्र भी कहते हैं । न्याय, प्रमाण और तर्क तीनों पर्यायवाचक हैं । वाद विद्या भी इसको कहते हैं । क्योंकि इसमें हेतु, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थानों का भी वर्णन किया गया है । शास्त्रार्थ में इनका उपयोग एवं प्रयोग किया जाता था । षोडश पदार्थ
नैयायिकों ने षोडश पदार्थ माने हैं, जो इस प्रकार हैं- प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रह स्थान ।
सप्त पदार्थ
वैशेषिक दर्शन में सप्त पदार्थ स्वीकार किए गए हैं, जो इस प्रकार हैं- द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव | इस प्रकार दोनों दर्शनों में प्रमेय तत्वों का वर्णन विस्तार के साथ किया गया है । प्रमाण विचार
न्याय दर्शन में चार प्रमाण माने हैं - प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द | परन्तु वैशेषिक दर्शन में दो प्रमाण हैं - प्रत्यक्ष एवं अनुमान । न्याय और वैशेषिक दोनों ने ही संनिकर्ष को प्रमाण माना है । इन्द्रिय और
For Private and Personal Use Only