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भारतीय दर्शन में न्याय-विद्या | १३
रची है । मीमांसा परिभाषा, अर्थ संग्रह और मीमांसा न्याय प्रकाश आदि इस परम्परा के प्रकरण ग्रन्थ हैं, जिनका अध्ययन मीमांसा दर्शन को समझने के लिए आवश्यक है। मीमांसा दर्शन की अपनी पदार्थ मीमांसा भी है, प्रमाण मीमांसा भी है । मीमांसा दर्शन में षट् प्रमाण स्वीकृत हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द अथवा आगम, अर्थापत्ति और अनूपलब्धि । वेद अपौरुपय हैं। शब्द और अर्थ का नित्य सम्बन्ध है। प्रमाणों में आगम प्रमाण अथवा शब्द प्रमाण का विशेष महत्त्व है। वेदान्त संप्रदाय
___ इसके प्रवर्तक महर्षि व्यास हैं । वेदान्त सूत्र इनका मुख्य ग्रन्थ है । इसके चार अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय के चार पाद हैं। आचार्य शंकर ने इस पर विशालकाय शांकर भाष्य की रचना की है। अद्वैत वेदान्त का यह जीवानुभूत माना जाता है। वेदान्त सम्प्रदाय के शेष ग्रन्थ, या तो इसका समर्थन करते हैं, या फिर विरोध करते हैं। इसके अनुसार अद्वैत है, ब्रह्म । वह सत्य है, ज्ञान रूप है, और आनन्दमय है। ब्रह्म सत्य है, और यह दृश्यमान जगत मिथ्या है। माया ब्रह्म की शक्ति है । अविद्या के कारण ही जगत् की सत्ता है । इस सम्प्रदाय में एक ही तत्व है, और वह है, एक मात्र ब्रह्म । शांकर भाष्य पर अनेक टीकाएँ हैं, लेकिन भामती, परिमल और कल्पतरु विशेष प्रसिद्ध रही हैं। इस परम्परा के अनेक प्रकरण ग्रन्थ हैं । परन्तु विशेष प्रसिद्ध हैं - वेदान्तसार, वेदान्त परिभाषा, अद्वैत सिद्धि और वेदान्त मुक्तावली । प्रमेय और प्रमाण ___ब्रह्म, जीव, आत्मा, ईश्वर, जगत् और माया-ये सब प्रमेय तत्त्व हैं। वेदान्त षट् प्रमाण स्वीकार करता है-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, आगम, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि । वेदान्त परिभाषा ग्रन्थ में, प्रमाणों का अतिविस्तृत तथा अति सुन्दर वर्णन किया गया है । वेदान्त परिभाषा ग्रन्थ तीन भागों में विभक्त है-प्रमाण, प्रमेय और प्रयोजन । वेदान्तसार प्रमेय बहल ग्रन्थ माना जाता है । संक्षेप में, यह वेदान्त का सार है ।
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