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१६ | जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन
संस्थापक एवं प्रवर्तक माने जाते हैं । यह अपने युग के महान तार्किक थे। इनकी भाषा चारु थी, अतः चार्वाक नाम से प्रसिद्ध हैं।
चार्वाक दर्शन भारतीय दर्शनों में एकान्त रूप से भौतिकवादी दर्शन केवल चार्वाक ही है। वह ईश्वर को नहीं मानता । आत्मा को अभौतिक नहीं मानता। पूर्वजन्म तथा भूयोजन्म को नहीं मानता। पांच भूतों को मूल-तत्त्व स्वीकार करता है । एकमात्र प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है। क्योंकि इन्द्रिय ग्राह्य परिज्ञान, केवल पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु का ही हो सकता है । अतः आकाश को भी वह पदार्थ मानने को तैयार नहीं है । क्योंकि आकाश का इन्द्रियप्रत्यक्ष नहीं हो पाता है । साधारण लोगों में, यह दर्शन अत्यन्त लोकप्रियता प्राप्त कर चुका था । अतः लोगों ने इस दर्शन का नाम लोकायत दर्शन रखा था । लोकायत का अर्थ है-लोक में फैला हुआ विचार । वेद प्रमाण नहीं
लोकायत दर्शन के प्रवर्तक वृहस्पति वेदों को प्रमाण स्वीकार नहीं करते । ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषदों को भी प्रमाण नहीं मानते हैं। यज्ञ-याग में होने वाली हिंसा का विरोध करते थे । इस सम्प्रदाय के परम विद्वान जयराशि भट्ट थे । ये तार्किक तथा नैयायिक थे । इनका एक ग्रन्थ है-तत्त्वोपप्लव । गायकवाड़ सस्कृत ग्रन्थ-माला से इसका प्रकाशन हो चुका है । चार्वाक दर्शन अति प्राचीन दर्शन है, जिसका उल्लेख रामायण एवं महाभारत में भी उपलब्ध होता है ।
जैन दर्शन
भारत के दर्शनों एवं धर्मों में यह भी एक अत्यन्त प्राचीन दर्शन और धर्म माना गया है। ऋषभदेव से वर्धमान महावीर तक चौबीस तीर्थकर इसके आदर्श महापुरुष माने जाते हैं । वे सर्वदर्शी एवं सर्वज्ञ थे । नमस्कार मन्त्र, इस धर्म का मूल महामन्त्र है। इस धर्म में वीतराग एवं जिन की उपासना की जाती है । जिन के उपासक जैन कहे जाते हैं । जैन धर्म की साधना के छह अंग हैं-सामायिक, तीर्थंकर-स्तवन, गुरु वन्दन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान । इन छह अंगों की उपासना, प्रति
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