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भारतीय दर्शनों का संक्षिप्त परिचय | १५
जैन-धारा के विचार और आचार के आदर्श पुरुष हैं, तीर्थंकर देव । यह तीर्थंकर का धर्म, दर्शन और संस्कृति ही आज जैन धर्म के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध रही है। तथागत का धर्म, दर्शन और संस्कृति ही आज बौद्ध धर्म कहा जाता है। आजीवक धर्म, दर्शन और संस्कृति के प्रवर्तक, गोशालक माने जाते हैं । आज उनका न कोई ग्रन्य है, और न सम्प्रदाय । जैन और बौद्ध साहित्य से ही उसका परिचय उपलब्ध होता है । उसका मुख्य सिद्धान्त था-नियतिवाद । पुरुष का पुरुषार्थ कुछ भी नहीं कर सकता । पुरुषार्थ सर्वथा व्यर्थ होता है । एक जन-श्रु ति के अनुसार, सम्राट अशोक पहले आजीवक पन्थ के अनुयायी थे, बाद में बौद्ध हो गये थे।
ब्राह्मण दर्शन की छह शाखाएं हैं, जो इस प्रकार हैं-न्याय और वैशेषिक, सांख्य और योग तथा मीमांसा और वेदान्त । इनको वैदिक दर्शन भी कहा जाता है । यद्यपि वास्तविक रूप में, वैदिक दर्शन दो ही हैंमीमांसा और वेदान्त । वेद के कर्मकाण्ड को मीमांसा दर्शन कहते हैं, और ज्ञान काण्ड को वेदान्त । सांख्य-योग यज्ञ में होने वाती हिंसा का घोर विरोध करते हैं। न्याय-वैशेषिक भी स्वतन्त्र दर्शन हैं, वे दोनों ही वेदमूलक नहीं हैं। एक अन्य प्रकार से भी भारत के दर्शनों का विभाजन किया जा सकता है, जैसे आत्मवादी और अनात्मवादी । इस विभाजन में केवल दो दर्शन आते हैं-एक चार्वाक दर्शन और दूसरा क्षणिकवादी बौद्ध दर्शन । शेष सभी दर्शन आत्मवादी हैं।
जो दर्शन पूर्वजन्म, भूयोजन्म तथा आत्मा की अमरता में आस्थावान् हैं, वे आस्तिक हैं, आत्मवादी हैं । कर्म और कर्म-फल को मानने वाले आत्मवादी हैं । इस अर्थ में तो बौद्ध दर्शन भी आत्मवादी कहा जा सकता है । अब केवल एक चार्वाक दर्शन ही अनात्मवादी दर्शन बच जाता है । लेकिन आत्मा के सम्बन्ध में चार्वाक का कहना है, कि आत्मा शरीर से भिन्न नहीं है । शरीर ही आत्मा है । मृत्यु ही अपवर्ग है और भौतिक सुख ही स्वर्ग है।
___ वस्तुतः चार्वाक दर्शन, उपनिषद् के एकान्त आत्मवाद की प्रतिक्रिया है। वेदों के हिंसात्मक यज्ञ-याग का विरोध किया, उपनिषद् के ज्ञानात्मक आत्मवाद ने । आत्मा के अमरत्व का विरोध किया, चार्वाक के भौतिकवाद ने । इस प्रकार वहस्पति का सम्प्रदाय आत्मा, कर्म, फल, पूर्वजन्म और भूयोजन्म का प्रबल विरोध करता रहा । वृहस्पति चार्वाक सम्प्रदाय
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