________________
१६ जैन कथा कोष
अतूंकारी की आज्ञा से उसकी दासी लक्षपाक तेल का घड़ा लेकर आयी । लेकिन देव ने अपनी माया से वह घड़ा फोड़ दिया। तदुपरान्त एक के बाद एक इस प्रकार तीन घड़े देव ने अपनी माया से फोड़े। इतनी कीमती वस्तु के नष्ट हो जाने पर भी अतूंकारी को तनिक भी क्रोध न आया । तब देव ने अपना रूप प्रकट किया, कंचन की वर्षा की और उसकी क्षमाशीलता की प्रशंसा करता हुआ चला गया।
- उपदेशमाला : धर्मदासगणि
१३. अदीनशत्रु
अदीनशत्रु कुरुदेश के हस्तिनापुर नगर का राजा था। पूर्व भव में यह राजा महाबल का मित्र था । इसका नाम उस भव में वैश्रमण था । इसने भी राजा महाबल के साथ दीक्षा ली थी और उग्र तप किया था । संयम के प्रवाह से यह अनुत्तरोपपातिक विमान में उत्पन्न हुआ था और वहाँ से च्यवकर हस्तिनापुर का राजा अदीनशत्रु बना था ।
राजा महाबल का जीव मिथिला के राजा कुंभ के यहाँ मल्लिकुमारी (उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान् मल्लिनाथ) के रूप में उत्पन्न हुआ था ।
कुंभ राजा का मल्लदिन्न नाम का एक पुत्र था । उसने अपने महल के बगीचे में अनेक स्तम्भों से सुशोभित एक सभामंडप बनवाने का विचार किया । सभामंडप के स्तम्भों को चित्रों से सुसज्जित करने के लिए अनेक चित्रकार लगा दिये गये। उनमें से एक चित्रकार विशेष प्रतिभाशाली था । वह किसी व्यक्ति के शरीर के एक ही अंग को देखकर ऐसा सजीव चित्र बना सकता था कि देखने वाला चकित रह जाये, और यह भेद न कर सके कि वह चित्र देख रहा है अथवा वह व्यक्ति स्वयं ही खड़ा है ।
चित्रकार तो सौन्दर्य - प्रेमी होते ही हैं । सुन्दरता को चित्रित करना उनका स्वभाव होता है। उस चित्रकार को भी एक बार मल्लिकुमारी के पैर का अगूंठा दिखाई दे गया । इस पर से उसने मल्लिकुमारी का चित्र ही स्तंभ पर बना दिया ।
मल्लदिन्न जब सभामंडप की साज-सज्जा देखने आया तो मल्लिकुमारी के चित्र को देखकर चकित रह गया । उसने इसे चित्रकार की गुस्ताखी समझा और उसे प्राणदण्ड का आदेश दे दिया । यह दण्ड सुनकर अन्य चित्रकारों और