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भारतीय संस्कृति में ध्यान परम्परा
खण्ड: प्रथम
है। जैन परम्परा में उत्तराध्ययन सूत्र' में मुनि की दिनचर्या का उल्लेख किया गया है। उसमें स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि मुनि दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करें, द्वितीय प्रहर में ध्यान, तृतीय प्रहर में भिक्षाचर्या और चतुर्थ प्रहर में फिर स्वाध्याय करें। इसी प्रकार रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय प्रहर में ध्यान, तृतीय प्रहर में निद्रा एवं चतुर्थ प्रहर में पुन: स्वाध्याय करें। इस प्रकार श्रमण साधकों और तापसों में ध्यान-साधना की प्रवृत्ति मुख्य थी। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध ने अपने साधनात्मक जीवन का अधिकांश समय ध्यान में ही व्यतीत किया था। वस्तुत: श्रमण साधना या तापस साधना में ध्यान को सर्वोपरि माना गया है। क्योंकि श्रमण परम्परा में आत्मविशुद्धि का जो मार्ग प्रतिपादित है उसके लिए स्वाध्याय और ध्यान दो आवश्यक तत्त्व माने गये हैं। 'उत्तराध्ययन सूत्र' में यह प्रश्न किया गया है कि कायोत्सर्ग (ध्यान) से जीव को क्या प्राप्त होता है? इसके उत्तर में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कायोत्सर्ग के द्वारा आत्मा अतीत और वर्तमान के दोषों की विशुद्धि करता है और इस विशुद्धि के द्वारा अन्त में वह प्रशस्त ध्यान को प्राप्त हो कर सुखपूर्वक विचरण करता है।22 इससे यही फलित होता है कि आत्मविशुद्धि और आत्मशान्ति का यदि कोई सफल मार्ग हो सकता है तो वह मार्ग ध्यान का ही है।
आत्मविशुद्धि और समता की साधना
श्रमण परम्परा का मुख्य लक्ष्य आत्मविशुद्धि रहा है। आत्मविशुद्धि से तात्पर्य है - चित्त में उठने वाली इच्छाओं, आकांक्षाओं, कषायों और वासनाओं के संस्कारों को समाप्त करना। संक्षेप में कहा जाय तो राग और द्वेष जन्य तनावों से आत्मा को मुक्त रखना ही उसकी विशुद्धि है। राग और द्वेष के निमित्त से हमारी चेतना का समत्व भंग होता है और चित्त में तनाव उत्पन्न होता है। वस्तुत: तनाव से मुक्त और समता से संयुक्त आत्मा की अवस्थिति ही श्रमण साधना का मुख्य लक्ष्य है। दूसरे शब्दों में कहें तो श्रमण साधना का मुख्य लक्ष्य विकल्पजाल से तनावयुक्त बने हुए चित्त को निर्विकल्पता की ओर ले जाना है। विकल्पों की मूल कारण इच्छाएँ और आकांक्षाएँ हैं। यदि चित्त को निर्विकल्प बनाना है तो इच्छाओं और आकांक्षाओं से मुक्त होना होगा। इच्छाओं और आकांक्षाओं से मुक्त होने के लिए राग-द्वेष को समाप्त करना
22. वही, 29-12 ~~~~~~~~~~~~~~~
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