Book Title: Jain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Author(s): Uditprabhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 460
________________ आधुनिक चिन्तक और ध्यानसाधना आचार्य महाप्रज्ञ का प्रेक्षाध्यान : वर्तमान में जैनध्यानविधाओं में प्रेक्षाध्यान का बहुत प्रसार है। अधुना, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के दशम आचार्य संस्कृत, प्राकृत आदि प्राच्य भाषाओं एवं भारतीय दर्शनों के विशेषतः जैनदर्शन के भारतविख्यात विद्वान् आचार्य श्री महाप्रज्ञ हैं । नाम अनुरूप ही वास्तव में वे विलक्षण प्रज्ञा व प्रतिभा के धनी हैं। महान् लेखक हैं, संस्कृत के आशुकवि हैं। आचार्यश्री तुलसी के वाचना - प्रमुखत्व में आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अनेक जैनागमों के सूक्ष्म विश्लेषण एवं विवेचन के साथ उनका संपादन- अनुवाद आदि किया है। वास्तव में, पाठ-शोधन तथा सुव्यवस्थित संपादन की दृष्टि से ये आगम बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। अध्येताओं और अनुसंधाताओं के लिए बड़े ही उपयोगी हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का जन्म झुंझुनू जिले में टमकोर नामक ग्राम में हुआ । उन्होंने बाल्यावस्था में ही अपनी माता और बहन के साथ आचार्यश्री कालू गणि से श्रमणदीक्षा प्राप्त की । जन्मजात प्रज्ञा से विभूषित थे। बचपन से ही अपने दीक्षागुरु आचार्यश्री कालूगणि के सान्निध्य में रहे तथा उनकी छत्रछाया में आचार्यश्री तुलसी से विद्याध्ययन किया। आचार्यश्री तुलसी बड़े सुयोग्य विद्वान् थे । आचार्य श्री कालूगणि बालसंतों के अध्यापन का कार्य उन्हें सौंपा था । खण्ड : नवम ~~ श्री महाप्रज्ञ जी का पूर्व नाम मुनिश्री नथमल जी था । आप अध्ययन में उत्तरोत्तर प्रगति करते गये। संस्कृत तथा भारतीय वाङ्मय का उच्च अध्ययन करने में आपको संस्कृत के महान् विद्वान् आशुकविरत्न पं. रघुनन्दन शर्मा का योगदान मिला। मुख्य बात तो यह है कि महाप्रज्ञ जन्म से ही विद्या के अत्यन्त उच्च संस्कार लेकर आये थे, जो विकास और उन्नयन का ज्यों-ज्यों अवसर मिला, सम्वर्द्धित होते गये। अपने मुनि जीवन में ही आपने संस्कृत, हिन्दी में अनेक ग्रन्थों की रचना की, जो आदर्श साहित्य संघ, जैन विश्व भारती आदि संस्थाओं की ओर से प्रकाशित हैं । आपने पूना, वाराणसी आदि विद्या केन्द्रों में अपने वैदुष्य से अनेक प्रशस्तियाँ अर्जित कीं। आप आचार्यश्री तुलसी के परमकृपापात्र थे। आपके व्यक्तित्व और कृतित्व से आचार्यश्री तुलसी प्रभावित थे। उन्होंने आपको अपने जीवन काल में ही युवाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया तथा विशेष रूप से जैन योग पर युगानुकूल सरल समीचीन ध्यान पद्धति आदि के निष्पादन का महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपा। आपने अपने गुरुदेव द्वारा Jain Education International 38 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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