Book Title: Jain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Author(s): Uditprabhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 464
________________ आधुनिक चिन्तक और ध्यानसाधना खण्ड: नवम अनुभव कर आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान के अन्तर्गत उन्हें व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया है। प्रेक्षाध्यान में आलम्बनों या प्रयोगों को बारह भागों में विभक्त किया गया है। कालान्तर में पुन: वर्गीकरण के दौरान उन्हें आठ मुख्य, चार सहायक व तीन विशिष्ट अंग के रूप में बाँटा गया है। प्रेक्षाध्यान के मुख्य अंग : कायोत्सर्ग, अन्तर्यात्रा, श्वासप्रेक्षा, शरीरप्रेक्षा, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा, लेश्याध्यान, अनुप्रेक्षा और भावना। सहायक चार अंग : ध्वनि (जप), मुद्रा, आसन और प्राणायाम। विशिष्ट तीन अंग : वर्तमान क्षण की प्रेक्षा, विचार प्रेक्षा और अनिमेष प्रेक्षा। 1. कायोत्सर्ग : काय x उत्सर्ग-इन दो शब्दों से कायोत्सर्ग शब्द बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है शरीर का उत्सर्ग करना। इसका प्रायोगिक अर्थ है-शारीरिकशिथिलीकरण-श्वास को शान्त करना, शरीर की चेष्टाओं को शांत करना, मन को रिक्त करना। आत्मा का अनुभव होना और शरीर के अनुभव का समाप्त हो जाना कायोत्सर्ग है। आत्मा तक पहुँचने का द्वार है कायोत्सर्ग। इससे आत्मा भिन्न है, शरीर भिन्न है, इस भेदविज्ञान का साक्षात्कार होता है। - कायोत्सर्ग के अभ्यास से अनेक निष्पत्तियाँ होती हैं-तनावमुक्ति, आत्मविशुद्धि, तितिक्षा, अनुप्रेक्षा और एकाग्रता, ज्ञाताद्रष्टा भाव का विकास, चैतन्य का साक्षात्कार आदि। 2. अन्तर्यात्रा : अन्तर्मुख होने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है अन्तर्यात्रा। पृष्ठरज्जु का प्रदेश ध्यान-साधना की दृष्टि से बहुत मूल्यवान है। योगशास्त्र के अनुसार इड़ा और पिंगला का प्राणप्रवाह शरीर की सक्रियता का प्रवाह है। सुषुम्ना निष्क्रियता या निवृत्ति का प्राण-प्रवाह है। एकाग्रता, सघन एकाग्रता और निर्विचारता-इन तीनों की साधना सुषुम्ना के प्राणप्रवाह की अवस्था में सम्यक् प्रकार से हो सकती है। 3. श्वास प्रेक्षा : शरीर और मन के साथ श्वास का गहरा सम्बन्ध है। यह एक ऐसा सेतु है, जिसके द्वारा नाड़ी संस्थान, मन और प्राणशक्ति तक पहुँचा जा सकता 36. भीतर की ओर, पृ. 80 ~~~~~~~~~~~~~~~ 42 ~~~~~~~~~~~~~~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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