Book Title: Jain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Author(s): Uditprabhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 465
________________ खण्ड : नवम जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम है। चैतन्य के द्वारा प्राणशक्ति संचालित होती है। प्राणशक्ति के द्वारा मन, नाड़ी संस्थान और शरीर संचालित होता है। श्वास शरीर की ही एक क्रिया है। कहा जा सकता है कि श्वास को देखने का अर्थ है-प्राणशक्ति के स्पन्दनों को देखना और चैतन्य शक्ति को देखना, जिसके द्वारा प्राणशक्ति स्पन्दित होती है। श्वासप्रेक्षा के प्रकार : श्वास दो प्रकार का होता है-ऐच्छिक और अनैच्छिक । प्रयत्न के द्वारा श्वास को दीर्घ किया जा सकता है तथा किसी एक नासारन्ध्र से लेकर दूसरे नासारन्ध्र से निकाला जा सकता है। श्वास प्रेक्षा तीन प्रकार की है - 1. सहज-श्वास प्रेक्षा, 2. दीर्घश्वास-प्रेक्षा, 3. समवृत्ति-श्वास प्रेक्षा। ___4. शरीर प्रेक्षा : इसका प्रयोजन है आत्मा के प्रति जागरूकता में निरन्तरता का विकास। सांसारिक जीव के जितना शरीर का आयतन है उतना ही आत्मा का आयतन है। जितना आत्मा का आयतन है, उतना ही चेतना का आयतन है। इसका तात्पर्य यह है कि शरीर के कण-कण में चैतन्य व्याप्त है। इसलिए शरीर के प्रत्येक कण में संवेदन होता है। उस संवेदन से मनुष्य अपने स्वरूप को देखता है, अपने अस्तित्व को जानता है, अपने स्वभाव का अनुभव करता है। शरीर में होने वाले संवेदनों को देखना चैतन्य को देखना है, उसके माध्यम से आत्मा को देखना है अर्थात् स्थूल शरीर की प्रेक्षा करते-करते सूक्ष्म शरीर का साक्षात्कार करते हैं और सूक्ष्म शरीर को देखतेदेखते आत्मा का साक्षात्कार हो जाता है। 5. चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा :- आत्मा और चैतन्य पूरे शरीर में व्याप्त हैं। पूरा नाड़ीतन्त्र चैतन्य से ओतप्रोत है। फिर भी शरीर के कुछ भाग ऐसे हैं जहाँ चैतन्य सघन रूप में व्याप्त है। जहाँ चैतन्य सघन होता है, वह स्थान आयुर्वेद की भाषा में मर्मस्थान और हठयोग की भाषा में चक्र कहलाता है। प्रेक्षाध्यान की पद्धति में उसे चैतन्यकेन्द्र कहा जाता है। - हमारे शरीर में अनेक चैतन्यकेन्द्र हैं। प्रेक्षाध्यान की पद्धति में तेरह चैतन्य केन्द्रों पर जप और ध्यान के प्रयोग किये जाते हैं, वे इस प्रकार हैं37 37. वही, पृ. 102, 103 Mmmmmmmmmmmmmmm 43 Mmmmmmmmmmmmmar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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