Book Title: Jain Dharma me Dhyana ka Aetihasik Vikas Kram
Author(s): Uditprabhashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 468
________________ आधुनिक चिन्तक और ध्यानसाधना खण्ड: नवम लेश्या ध्यानसाधना द्वारा साधक अपने व्यक्तित्व में रूपान्तरण कर अपूर्व, अद्वितीय आनन्द और अनिर्वचनीय सुख-शान्ति को उपलब्ध हो सकता है। 7. वर्तमान क्षण की प्रेक्षा : आचारांग सूत्र में भ. महावीर ने कहा हैहे साधक ! तुम क्षण को जानो।41 इसी क्षण को जानो।42 अतीत बीत जाता है, भविष्य अनागत होता है, जीवित क्षण वर्तमान होता है। अतीत के संस्कारों की स्मृति से भविष्य की कल्पनाएँ और वासनाएँ होती हैं। वर्तमान क्षण का अनुभव करने वाला स्मृति और कल्पना दोनों से बच जाता है। स्मृति और कल्पना राग-द्वेषयुक्त चित्त का निर्माण करती हैं। जो वर्तमान क्षण का अनुभव करता है, वह सहज ही राग-द्वेष से बच जाता है। तथागत अतीत और भविष्य के अर्थ को नहीं देखते। कल्पना को छोड़ने वाला महर्षि वर्तमान का अनुपश्यी (देखनेवाला) हो, कर्मशरीर का शोषण कर उसे क्षीण कर डालता है।43 8. विचारप्रेक्षा और समता : एकाग्रता और विचार में द्वन्द्व है। यदि विचार का प्रवाह है तो एकाग्रता नहीं हो सकती और यदि एकाग्रता है तो विचार का प्रवाह नहीं हो सकता। एकाग्रता के लिए जरूरी है एक विचार पर केन्द्रित होना और विचार के प्रवाह को अवरुद्ध करना। विचार को रोकने का प्रयत्न एकाग्रता में सहायक नहीं होता। विचार को देखना शुरू करो, प्रवाह रुक जायेगा।44 यह कहा जा सकता है कि केवल जानना और देखना ही समता है। 9. संयम : संयम की भूमिका में इच्छा का निरोध, संकल्पशक्ति का विकास व स्व-निर्देश प्रधान होता है। जिसके संयम की शक्ति विकास पाती है उसके विजातीय तत्त्व पलायन कर जाते हैं। प्रेक्षा संयम है, उपेक्षा संयम है। पूर्ण एकाग्रता के साथ अपने लक्ष्य को देखने 41. आचारांग सूत्र, 2.24 42. सूत्रकृतांग सूत्र, 1.2.73 43. आचारांग सूत्र, 3.60 44. भीतर की ओर, पृ. 163 ~~~~~~~~~~~~~~~ 46 mmmmmmmmmmmmmmm Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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