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आधुनिक चिन्तक और ध्यानसाधना
साधक को ऐहिक या सांसारिक दृष्टि से भी शान्ति प्राप्त होती है, उद्विग्नता मिटती है । इसी कारण वह सर्वथा आदेय या उपादेय है। जो केवल परलोक की बात करें, स्वर्ग प्राप्ति की ही चर्चा करें, आज के वैज्ञानिक वायुमण्डल में पलने वाले जनजीवन में उस ओर आकर्षण नहीं होता-जादू वह है जो सिर पर चढ़कर बोले- इस कहावत के अनुसार आज का व्यक्ति यह चाहता है कि धर्म की आराधना से उसे सांसारिक जीवन में भी कुछ प्राप्त होना चाहिए । स्वर्ग प्राप्ति ही उन्हें पर्याप्त नहीं लगती क्योंकि वह तो परोक्ष है। मिलेगा या न मिलेगा या कब मिलेगा इस सब के आगे प्रश्नचिह्न लगे हैं।
ऐसे वैचारिक युग में आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षा ध्यान का संप्रवर्तन कर इन प्रश्नों का निश्चय ही समाधान दिया है। मानव आज के तनावग्रस्त जीवन में प्रेक्षा ध्यान द्वारा तनावमुक्ति की ओर बढ़ सकता है। देह, मन और उनके विविध पर्यायों
पर्यवेक्षण से जीवन में यथार्थता का बोध होता है, जिससे लालसा और कामनाओं के जंजाल में ग्रस्त अशान्त मानसिकता प्रशान्त भाव प्राप्त कर सकती है। प्रेक्षा द्वारा जनित आन्तरिक अनुभूतियों से विकारग्रस्त बहिर्जीवन भी उत्तम संस्कारनिष्ठ बन सकता है। मानसिक संक्लेश और उद्वेग से शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है। उससे कई प्रकार की व्याधियों का होना भी आशंकित है। यदि संक्लेश, उद्वेग मिट जाते हैं तो वैसे संकटों से मुक्त रहा जा सकता है। प्रेक्षा ध्यान मानसिक संक्लेश और उद्वेग को प्रशान्त भाव से परिणत करने का सफल मार्ग है।
आज का लोकमानस विविध सम्प्रदायों में बँटे हुए धर्म में, कर्म में रुचिशील होता जा रहा है। वह तो एक ऐसा मार्ग चाहता है जो सम्प्रदायातीत हो, सर्वग्राह्य हो । प्रेक्षा ध्यान एक ऐसा ही साधनाक्रम है जो जैन - जैनेतर सभी के द्वारा निःसंकोच ग्राह्य है। आज प्रायः सभी धर्मों के अनुयायी इसमें सोत्साह भाग लेते जा रहे हैं। इन सब कारणों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि प्रेक्षा ध्यान वर्तमान युग की धार्मिक बुभुक्षा तथा साधना विषयक पिपासा के लिए अन्न और जल की तरह एक पौष्टिक और बलप्रद खुराक है।
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खण्ड : नवम
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