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आधुनिक चिन्तक और ध्यानसाधना
खण्ड : नवम
कि मन में जो तनाव रहता था, वह दूर हो गया है। लौकिक कार्यों में जो ममत्व व आसक्ति रहती थी वह भी धीरे-धीरे घटती जा रही है। प्रतिकूल परिस्थितियों में आत्मस्थ और धीर रहने का उनका अभ्यास बढ़ता जा रहा है। धार्मिक कार्यक्रमों में अभिरुचि जागृत हुई है और अब अन्यायपूर्ण कार्यों में हाथ डालने का दुस्साहस नहीं होता। अधिक जन-संकुल स्थान में मन ऊबने लगता है। शान्त परिवेश और वातावरण मन को भाने लगा है।
न केवल जैन समाज में महासती जी का समत्व भाव सहज रूप में व्याप्त है, अपितु आप जैन-जैनेतर किन्हीं में भेद नहीं करती हैं। यही कारण है कि आपके पास सभी सम्प्रदाय के भाई-बहन बड़े उत्साह एवं श्रद्धा भाव के साथ आते हैं और आपसे कुछ सीखने का प्रयत्न करते हैं। जहाँ भी आपका प्रवास होता है एक प्रकार से वह स्थान ध्यान शिविर या ज्ञान यज्ञ का रूप ले लेता है। आचार्य शिवमुनि की ध्यान साधना विधि:
___ जैन योग ध्यान-साधना के वर्तमान में गतिशील विभिन्न पद्धति क्रमों के उद्भावक महापुरुषों में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के चतुर्थ पट्टधर आचार्य सम्राट् श्री शिवमुनि जी म.सा. का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
आपने जैनेतर साधना पद्धतियों का ज्ञान केवल तद्विषयक साहित्य पढ़कर ही प्राप्त नहीं किया, बल्कि स्वयं उनमें संलग्न होकर अनुभव प्राप्त किया। ऐसा करने से ही किसी विषय का वास्तविक बोध हो सकता है। केवल सिद्धान्तों के पठन से यह नहीं होता। आचार्यप्रवर ने इन सब ध्यान मूलक साधनाओं के सूक्ष्म, गंभीर परिशीलन और अभ्यास पूर्वक क्रियान्वयन के अनन्तर एक विशेष ध्यान पद्धति प्रस्तुत की है जिसका अवलम्बन कर संयमी एवं गृही दोनों ही प्रकार के साधक अपने जीवन में आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त कर सकते हैं।
आचार्य श्री शिव मुनि द्वारा संचालित ध्यान-योग-साधना-विधि का मूल आधार है - वर्तमान में जीना, चित्त का मौन और आत्मशुद्धि। उनका कहना है कि वर्तमान के प्रति सजगता, चित्त की समाधि-दशा एवं प्रेम का जब मिलन होता है, तब साधक को आनन्दानुभव होता है। उस आनन्द को प्रतिक्षण जीना और जानना यह सूत्र इस साधना का अभिन्न अंग है। ~~~~~~~~~~~~ 36 ~~~~~~~~~~~~~~~
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