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खण्ड : नवम
__ जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम
तक जाता है। अंग-अंग में उत्पन्न होते, विलीन होते, पुन: उत्पन्न होते एवं विलीन होते-जाते संवेदनों का साक्षी-भाव से दर्शन, उनका अनित्यता का, अशाश्वतता का एवं नश्वरता का स्वरूप सिद्ध करता है। मन में वैसा स्थापित होता है जिससे विकार के साथ मन का तादात्म्य सहज ही टूट जाता है। जिस तरह वृक्ष का जीर्ण पत्ता शीघ्र ही झड़ जाता है उसी तरह वे विकार भी मिटते जाते हैं।
यह श्वास-प्रेक्षण, अंगप्रत्यंगादि का बाह्य एवं आन्तरिक दृष्टि से प्रेक्षण, उनके संवेदनों का अनुभवन केवल जानने एवं समझने मात्र से सिद्ध नहीं होता, उसके लिए सुयोग्य गुरु की सन्निधि में विधिवत् अभ्यास करना अत्यन्त अपेक्षित है।
विपश्यना की अभ्यास-पद्धति में पहले आनापानसति का अभ्यास आवश्यक है। यह बौद्ध दर्शन का शब्द है जो श्वास-प्रश्वास का द्योतक है। इसके अनुसार मन को अतीत, अनागत, मनोज्ञ-अमनोज्ञ, राग-द्वेष आदि से प्रसूत कल्पनाओं से हटाकर वर्तमान क्षण में बाहर जाते, भीतर आते श्वास-प्रश्वास को जो नासिका में स्पर्शमूलक अनुभूतियाँ होती हैं उनको देखने और जानने का प्रयत्न करना है। साधक यह देखता रहता है। श्वास नासिका का स्पर्श करता हुआ बाहर निकल रहा है। स्पर्श करता हुआ भीतर जा रहा है। श्वास के बाहर निकलते समय और भीतर जाते समय वह नासिका के भीतरी भाग का स्पर्श करता है। उस स्पर्श पर साधक अपने मन को प्रेषित करता है और अनुभव करता है। यही क्रम चलता रहता है। श्वास केवल आते-जाते समय नासिका का ही स्पर्श नहीं करता, किन्तु वह देह के अन्तर्वर्ती भागों का भी स्पर्श करता है। नासिका उनमें केन्द्र रूप या मुख्य है क्योंकि इसके द्वारा ही श्वास का बाहर निकलना या भीतर आना होता है। आनापानसति के अनन्तर साधक विपश्यना पर आता है जो उसका सूक्ष्म अग्रिम रूप है। जैसा पहले सूचित किया गया है वहाँ वह अपने मस्तक से पैर के अंगूठे तक होने वाले संवेदनों को देखता है, जानता है। उसकी आँखें मूंदी रहती हैं। प्रशिक्षण के निर्देशों एवं संकेतों के अनुसार मन द्वारा समस्त देह की परिक्रमा करता है। यह देखने या अनुभव करने की परिक्रमामूलक प्रक्रिया और अधिक गहराई तक चली जाती है जिससे वह देह के किसी भी भाग पर होने वाली अत्यन्त सूक्ष्म से भी सूक्ष्म सिहरन तक का अनुभव करता है। शरीर का प्रत्येक भौतिक परमाणु प्रतिक्षण निर्मित हो रहा है, विनष्ट हो रहा है। वह ऐसा जानता है, अनुभव करता है।
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