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आधुनिक चिन्तक और ध्यानसाधना
महासती उमराव कुंवर 'अर्चना' का मुद्रा ध्यान :
वर्तमान काल में अनेक जैनाचार्यों - मनीषियों आदि द्वारा ध्यान-साधना के सन्दर्भ में शास्त्रीय और स्व-स्वअनुभूतिपरक जो विधिक्रम प्रस्तुत किये गये हैं वे जैन साधना पद्धति के विकास के परिचायक हैं। उनमें ध्यानयोग की महान् साधिका, विद्या - चारित्र और सेवा की प्रतिमूर्ति गुरुवर्या महासती श्री उमराव कुंवर जी म.सा. 'अर्चना' द्वारा प्रतिबोधित सर्वोपयोगी सरल, सहज, रोचक साधना पद्धति का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
महासती जी श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की प्रखर विदुषी, धर्मप्रभाविका महासतियों में अपना प्रतिष्ठापूर्ण स्थान लिये हुए हैं। वे जैन जगत् के प्रखर प्रतिभाशील, निर्विकार चेता आगमोद्धारक महामहिम स्वर्गीय युवाचार्यप्रवर श्री मिश्रीमलजी म.सा. 'मधुकर' की साध्वी परम्परा से सम्बद्ध हैं ।
खण्ड : नवम
राजस्थान के अजमेर जिले के अन्तर्गत दादिया नामक ग्राम इनका जन्म हुआ । इनके पिता श्री मांगीलाल जी अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध प्रभावशाली पुरुष थे। समृद्ध, संपन्न परिवार था । आपकी माताश्री आपको सात दिन की छोड़कर दिवंगता हो गई। पिताश्री की छत्रछाया में आपका लालन-पालन हुआ। शैशवावस्था में ही आपकी विलक्षण प्रतिभा, तितिक्षावृत्ति परिलक्षित होती थी। 'होनहार बिरवान के होत चिकने पात' के अनुसार आपके प्रारम्भिक लक्षणों से ऐसा प्रतीत होता था कि भविष्य के गर्भ में आपका परम ज्योतिर्मय व्यक्तित्व छिपा है। संयोगवश अल्पावस्था में ही आपका परिणय-संस्कार हुआ और दूसरा एक दुःखद संयोग बना । विवाह के कुछ ही समय पश्चात् आपके पतिश्री दिवंगत हो गये । पूर्वार्जित संस्कारवश आपकी अन्तरात्मा में सन्निहित, वैराग्य, निर्वेद और संवेग के भाव प्रकटित हुए। वैधव्य का शोक, आत्मजागरण में परिणत होने लगा । एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण संयोग और घटित हुआ जिसने आपके जीवन को अध्यात्मयोग की दिशा में मोड़ दिया। आपके पूज्य पिताश्री महान् कर्मयोगी होने के साथ-साथ अध्यात्मयोगी भी थे । आपकी माताश्री के स्वर्गवास के बाद उनका मन योग और साधना की दिशा में मुड़ता गया । समग्र लौकिक कार्यों का दायित्व वहन करते हुए भी उनका मन परमात्मोपासना में ही लीन रहता था। इसी बीच लगभग छह वर्ष तक वे घर से दूर अज्ञातवास में रहे और महान् योगियों के
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