________________
खण्ड : सप्तम
जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम
JNPP~~~
आचार्य हेमचन्द्र ईसा की बारहवीं शती के महान् विद्वान् और क्रान्तिकारी आचार्य थे । व्याकरण, कोश, महाकाव्य, प्रमाणशास्त्र इत्यादि अनेकानेक विषयों पर उन्होंने विपुल परिमाण में ग्रन्थरचना की । उन्होंने न केवल जैनजगत् को ही सांस्कृतिक और साहित्यिक देन दी वरन् उन्होंने समस्त गुर्जर प्रदेश और गुर्जर संस्कृति के इतिहास के नवनिर्माण में जो योगदान किया वह निःसन्देह सदा स्मरणीय रहेगा। भारतीय व्याकरणों में पाणिनि की 'अष्टाध्यायी' के समकक्ष कोई व्याकरणग्रन्थ यदि कहा जा सकता है तो वह 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' ही है ।
सिद्धराज जयसिंह गुजरात के महान् प्रतापी राजा थे। आचार्य हेमचन्द्र से वे अत्यन्त प्रभावित हुए और उनका अधिकाधिक सान्निध्य पाने लगे। उस समय संस्कृत - अध्ययन के क्षेत्र में व्याकरण का सर्वाधिक महत्त्व था । देशभर में प्राय: काश्मीरी वैयाकरणों के व्याकरणों का ही अध्ययन होता था । सिद्धराज की यह भावना थी कि गुजरात में भी महान् व्याकरण का निर्माण हो । उन्होंने गुजरात के विद्वानों की एक सभा आयोजित की और उनके समक्ष अपना अनुरोध निवेदित किया । मात्र हेमचन्द्र ही ऐसे थे जिन्होंने इस अनुरोध को स्वीकार किया। उन्होंने देश में प्रचलित समस्त व्याकरण ग्रन्थ मँगवा कर उनका गहनता एवं सूक्ष्मता से परिशीलन किया। चार वर्ष के घोर परिश्रम से उन्होंने महान् व्याकरण ग्रन्थ की रचना की। उसका नाम 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' रखा। अपने नाम से पूर्व सिद्धराज जयसिंह का नाम जोड़कर उन्होंने उसे भी अपने साथ सदा के लिए अमर कर दिया। इसके अतिरिक्त कोश, काव्य, प्रमाणशास्त्र इत्यादि विषयों पर उन्होंने अनेक ग्रन्थ रचे । सिद्धराज जयसिंह का उत्तराधिकारी कुमारपाल उनका अनन्य शिष्य था । अपने गुरु के अनुरोध पर अपने द्वारा शासित समस्त राज्य में उसने अमारी घोषणा करवायी, जिसके अनुसार मांस विक्रय और भक्षण हेतु पशुवध का निषेध किया गया । लगभग चौदह वर्ष तक यह क्रम चलता रहा जो विश्व के इतिहास का अहिंसा के संदर्भ में अद्वितीय प्रयोग था ।
ब) 'योगशास्त्र' ध्यान का अनुपम ग्रन्थ :
कुमार पाल आचार्यश्री के प्रति अनन्य श्रद्धा रखता था । जहाँ उसने राजकीय व्यवस्था के अनुसार जीवहिंसा का निषेध करवाया, वहीं उसने अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य अपने महान् गुरु की प्रेरणा से किये, साहित्य - सर्जन भी किया जैसा कि
3
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org