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आचार्य हेमचन्द्र, योगप्रदीपकार व सकलचन्द्रगणि के साहित्य में ध्यानसम्बन्धी निर्देश खण्ड : सप्तम
शुक्ल ध्यान के अधिकारी भी नहीं हैं। ऐसी स्थिति में शुक्ल ध्यान का वर्णन करने की क्या उपयोगिता है ? प्रस्तुत प्रश्न को समाहित करते हुए आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है- आजकल के मनुष्यों के लिए शास्त्रानुसार शुक्ल ध्यान का वर्णन हुआ है।103 शुक्ल ध्यान के भेद:
शुक्ल ध्यान के चार भेद हैं -
1. पृथक्त्व श्रुत सविचार, 2. एकत्व श्रुतअविचार, 3. सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति और 4. उत्सन्न क्रिया अप्रतिपाति।104
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पृथक्त्व श्रुतसविचार :
जैन परम्परानुसार वितर्क का अर्थ श्रुतावलम्बी विकल्प है। विचार का अर्थ है परिवर्तन। परमाणु आदि किसी एक द्रव्य में उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य आदि पर्यायों का, द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक आदि नयों के अनुसार, पूर्वगत श्रुत के आधार से चिन्तन करना पृथक्त्व श्रुत सविचार ध्यान कहलाता है। इस ध्यान में अर्थ-द्रव्य, व्यंजन, शब्द और योग का संक्रमण होता रहता है। ध्याता कभी अर्थ का चिन्तन करते-करते शब्द का
और शब्द का चिन्तन करते-करते अर्थ का चिन्तन करने लगता है। इसी प्रकार मनोयोग से काययोग में या वचन योग में, काययोग से मनोयोग में या वचनयोग में और वचनयोग से मनोयोग या काययोग में संक्रमण करता रहता है।
__ अर्थ, व्यंजन और योग का संक्रमण होते रहने पर भी ध्येय द्रव्य एक ही होता है, अत: उस अंश में मन की स्थिरता बनी रहती है। इस अपेक्षा से हमें ध्यान करने में कोई आपत्ति नहीं है।105
एकत्व श्रुत अविचार :
श्रुत के अनुसार अर्थ, व्यंजन
और योग के संक्रमण से रहित, एक
103. वही, 11.2-4 104. वही, 11.5 105. (क) वही, 11.6 (ख) स्थानांग वृत्ति, 4.1.247 पत्र 191 ~~~~~~~~~~~~~~~ 46 ~~~~~-~~-~
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