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खण्ड : नवम
जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम
धर्म की महायान शाखा विकसित हुई तब तक मात्र अपने कल्याण का लक्ष्य गौण हो गया। करुणा या लोक मंगल ने उसका की भावना स्थान ले लिया। ऐसा माना गया कि महाकरुणा-करुणा का परमोत्कृष्ट रूप है। जैसे एक माता अपने शिशु को सीढ़ियों से लुढ़कता देखकर करुणा विह्वल होती हुई अपने प्राणों का मोह त्याग कर उसे बचाने को दौड़ पड़ती है, उसी प्रकार मनुष्य हर किसी प्राणी के प्रति करुणाभाव से परिपूर्ण हो जाता है, तब वह महाकरुणा का रूप ले लेती है, तब परम ज्ञानलभ्य महाशून्य का साक्षात्कार होता है जो बौद्धदर्शन का परम सत्य या निर्वाण है।
इस धार्मिक वातावरण में ध्यान-साधना गौण होती गई। आगे चलकर महायान का वज्रयान या सहजयान या सिद्धयान के रूप में विकास हुआ। तब इस प्राचीन ध्यान साधना का प्राचीन रूप गौण हो गया। क्रमश: वह विस्मृत होती गई। भारत में उसका प्रचार-प्रसार लगभग समाप्त हो गया। बर्मा आदि देशों में जो मूलत: हीनयानी बौद्ध परम्परा के अनुयायी हैं, वहाँ यह विपश्यना नामक ध्यान पद्धति सुरक्षित रही। सन् 1972 से भारतवर्ष में पुन: इस पद्धति का प्रचलन हुआ जो उत्तरोत्तर विकास पाता गया। इसके प्रसारक श्री सत्यनारायण जी गोयनका हैं। इनके पूर्वजों का पीढ़ियों से बर्मा में व्यापार था। इनका 1924 में बर्मा में ही जन्म हुआ। वहीं वे बड़े हुए, शिक्षा प्राप्त की तथा व्यापार-उद्योग में लग गये। बर्मा के व्यावसायिक एवं उद्योग के क्षेत्र में इन्होंने अच्छी प्रतिष्ठा अर्जित की। समाजसेवा के कार्यों में इन्हें स्वभावत: अच्छी रुचि थी। एक धर्मानुरागी हिन्दू परिवार में इनका जन्म हुआ था। उसी के अनुरूप इनकी दिनचर्या चलती थी। अपने व्यवसाय एवं परिवार का सुखपूर्वक संचालन, यही उनका जीवन क्रम था। समृद्धि एवं साधन भी यथेष्ट परिमाण में थे।
कुछ समय बाद श्री गोयनका मस्तक-पीड़ा से भयंकर रूप से पीड़ित हो गये। कभी-कभी तो वह पीड़ा इतनी अधिक हो जाती कि दो दो-तीन दिन तक अपना सिर तक नहीं उठा पाते, निश्चेष्ट से पड़े रहते। साधनसम्पन्न होने के कारण उन्होंने बर्मा में एवं अन्य देशों में चिकित्सा करवायी किन्तु कोई लाभ नहीं हो सका। बर्मा में इन्होंने अपने हितैषी मित्रों से सुना कि श्री ऊ.वा. खिन नामक सज्जन जो बर्मा के महालेखाकार के पद पर कार्यशील हैं, ध्यान-साधना का अभ्यास कराते हैं, उससे मन का परिष्कार और विशोधन होता है तथा शारीरिक व्याधियाँ भी दूर हो जाती हैं। यद्यपि गोयनकाजी को तब तक आध्यात्मिक उत्थान जैसे विषयों में कोई आकर्षण ~~~mmmmmmmmmmmm 5 ~~~~~~~~~~~~~~~
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