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जैन धर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकास क्रम
अतः हम कह सकते हैं कि उन्होंने युग परिवर्तन के साथ साथ बदलते हुए मानस को समझा और चाहा कि प्राचीन साधनाक्रमों को विस्तार दिया जाए। युगीन अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए आचार्यश्री ने कुछ नये प्रयोग किये। नई दिशाएँ और साधकों के लिए विकास की नई भूमिकाएँ प्रदान कीं । आचार्य हरिभद्र सूरि से पहले वीर निर्वाण की तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक ध्यान की मौलिक पद्धति प्रतिपादित होती रही, जो महावीर के युग में प्रचलित थी । उनके रहस्य विस्मृत हो गये थे और विस्तार कम हो गया था और जो चल रहा था उसका नया संस्करण नहीं हुआ था । आचार्य हरिभद्रसूरि ने जैन साधना पद्धति का नया संस्करण कर जैन परम्परा में योग की नयी धारा प्रवाहित की अर्थात् उसका विकास किया ।
खण्ड : पंचम
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