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भारतीय संस्कृति में ध्यान परम्परा
खण्ड: प्रथम
विविध प्रकार के मल, अंग - प्रत्यंग, एकान्त स्थान में बैठकर श्वास -प्रश्वास पर ध्यान तथा उपशम रूप निर्वाण पर ध्यान किया जाता है।
. यहाँ आनापान नामक नवम अनुस्मृति विशेष ध्यान देने योग्य है। विपश्यना के रूप में जिस ध्यान पद्धति का विस्तार हुआ है उसके मूल में यही अनुस्मृति है।
__ बौद्धों ने अष्टांग योग के स्थान पर षडंगयोग को मान्यता दी है। ये छह अङ्ग इस प्रकार हैं - प्रत्याहार, ध्यान, प्राणायाम, धारणा, अनुस्मृति और समाधि। बौद्धों के एक सम्प्रदाय के अनुसार चित्त ही एकमात्र सत्य है। अत: चित्त की एकाग्रता के लिए 'झाण' साधना विहित है। बौद्धों की यह ध्यान साधना हठयोग की पद्धति के समान है।
इस प्रकार बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों में ध्यान साधना संबंधी साहित्य उपलब्ध होता है। यह एक विशेष महत्त्वपूर्ण बात है कि बौद्ध धर्म में आगे चलकर एक ऐसे सम्प्रदाय का विकास हुआ जो ध्यान सम्प्रदाय (झेन सम्प्रदाय) के नाम से जाना जाता है। यहाँ उसका किंचित् परिचय आवश्यक प्रतीत होता है।
बौद्ध धर्म का ध्यान सम्प्रदाय
28वें आचार्य बोधिधर्म ने सन् 520 या 526 ईसवी में चीन जाकर वहाँ ध्यान सम्प्रदाय (चान-त्सुंग) की स्थापना की। बोधिधर्म की मृत्यु के बाद भी चीन में उनकी परम्परा चलती रही। उनके उत्तराधिकारी इस प्रकार हुए :
1. हुइ-के (सन् 506-593 ईसवी) 2. संग-त्सन् (मृत्यु सन् 606 ईसवी)
ताओ-हसिन (सन् 580-651 ईसवी)
हुंग्-जेन (सन् 601-674 ईसवी) 5. हुइ-नेंग (सन् 638-713 ईसवी) चीन से यह साधना-तत्त्व जापान गया। येई-साइ (सन् 1141-1215)
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