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( अ ) १८ बोल पृष्ठ १४४ से १४४ तक। संयम जीवितव्य दुर्लभ कह्यो (सू० श्रु०१ अ० २ गा० १ )
१६ बोल पृष्ठ १४४ से १४६ तक । नमी राजर्षि मिथिला वलती देख साहमो जोयो नहीं ( उत्त० आ० ६ गा. २१-१३-१४-१५)
___२० बोल पृष्ठ १४६ से १४६ तक । साधु जय-पराजय न वांछै । ( दशवै० अ० ७ गा० ५०)
२१ बोल पृष्ठ १४६ से १४७ तक। ७ बोल हुवो इम न वांछै (दशवै० अ० ७ गा० ५१)
____ २२ बोल पृष्ठ १४७ से १४८ तक । घ्यार पुरुष जाति (ठा० ठा० ४)
२३ बोल पृष्ठ १४८ से १४८ तक । समुद्रपाली चोरने मारतो देखी छोडायो नहीं ( उत्त० अ० २१ गा०६)
२४ बोल पृष्ठ १४८ से १४६ तक। गृहस्थ रस्तो भूला ने मार्गवतायां साधु ने प्रायश्चित्त (निशी उ० १३)
२५ बोल पृष्ठ १४६ से १५० तक। धर्म तो उपदेश देइ समझायाँ कह्यो (ठा० ठा० ३ उ०४)
२६ बोल पृष्ठ १५० से १५१ तक । भय उपजायां प्रायश्चित्त ( निशीथ उ० ११ बो० १७०)
२७ बोल पृष्ठ १५१ से १५२ तक। गृहस्थनी रक्षा निमित्त मन्त्रादिक कियां प्रायश्चित्त (निशी० उ० १३)
२८ बोल पृष्ठ १५२ से १५६ तक । सामायक पोषा में पिण गृहस्थनी रक्षा करणी वर्जी ( उपास० अ०३)
२६ बोल पृष्ठ १५६ से १६१ तक । साधु ने नाथा में पाणी आवतो देखी ने वतावणो नहीं (आ० श्रु० २ ० ३ उ०१)