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४० बोल पृष्ठ ११३ से ११३ तक । सर्व श्रावक थकी पिण साधु चरित्र करी प्रधान छै ( उत्त० भ० ५ गा० २०)
४१ बोल पृष्ठ ११४ से ११६ तक । धावक री आत्मा शस्त्र कही छै (भग० श०७ उ० १)
४२ बोल पृष्ठ ११६ से ११८ तक । श्रावक रा उपकरण भला नहीं-साधु रा भला (ठा० ठा० ४ उ०१) इति जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने दानाऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता ।
अनुकम्पाऽधिकारः ।
१ बोल पृष्ठ ११६ से १२१ तक । भगवान् पोता ना कर्म खपावा मनुष्या में तारिवा धर्म कहै पिण असंयती जीषांने वचावा अर्थे नहीं (सूय० श्रु० २ ० ६ गा० १७-१८)
२ बोल पृष्ठ १२२ से १२४ तक। भसंयम जीवितव्या नों न्याय ।
३ बोल पृष्ठ १२४ से १२७ तक । नेमिनाथ जीना जिन्तवन ( उत्त० अ० २२ गा० १८)
४ बोल पृष्ठ १२७ से १३० तक। मेघ कुमार रे जीव हाथी भवे सुसला री अनुकम्पा (हाता० म०१)
५ बोल पृष्ठ १३० से १३४ तक। पडिमाधारी रो कल्प (दशा० दशा०७)
६ बोल पृष्ठ १३४ से १३५ तक । साधु उपदेश देवे पिण जीवां रो राग भाणी जीवण रे मर्थे नहीं (सू. श्रु. २०५गा० ३०)