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१६ बोल पृष्ठ ७ से ८० तक।। कुपात्रां ने कुक्षेत्र कह्या चार प्रकार रा मेह (ठा. ठा० ४ उ०४)
२० बोल पष्ठ ८० से८१ तक। गोशाला ने शकडाल पुत्र पीठ फलक आदि दियां धर्म तप नहीं ( उपा० ६० अ०७)
२१ बोल पष्ठ ८१ से ८३ तक। असंयती ने दियां कडुआ फल (विपा० अ० १):प्रत्युत्तरदीपिका का विचार (नोट)
२२ बोल पृष्ठ ८३ से ८४ तक। ब्राह्मणा में पापकारी क्षेत्र कह्या ( उत्त० म० १२ गा० २४ )
२३ बोल पृष्ठ ८४ से ८५ तक। १५ फर्मादान ( उपा० ६० अ० १)
२४ बोल पृष्ठ ८५ से ८७ तक । भात पाणी थी पोष्यां धर्माधर्म नो न्याय ( उपा० ६० अ० १)
२५ बोल पृष्ठ ८७ से ८६ तक। तुंगिया नगरी ना श्रांवकां ना उघाड़ा वारणा ना न्याय टीका (भ० श०५ उ०५)
२६ बोल पृष्ठ ८६ से १२ तक। श्रावक रा त्याग व्रत आगार अब्रत ( उवाई प्र० २० सूय० अ० १८)
२७ बोल पष्ठ ६२ से ३ तक। भनत ने भाव शस्त्र कह्यो-दशविध शस्त्र ( ठा० ठा० १०॥
२८ बोल पृष्ठ ६३ से १४ तक। अम्रत थी देवता न हुवे व्रत थी पुण्य पुण्य थी देवता हुवे (भ० श० १ उ०८)
___२६ बोल पृष्ठ ६५ से १६ तक। साधु ने सामायक में वहिरायां सामायक न भांगे भ० श० ८ उ०५)