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भगवती सूत्र-श. १८ उ. १ चरम अचरम
चरिमे, अचरिमे । णोभवसिद्धीय-णोअभवसिद्धीय जीवा सिद्धा य एगत्तपुहुत्तेणं जहा अभवसिद्धीओ।३। । ___ २५-सण्णी जहा आहारओ, एवं असण्णी वि । णोसण्णी. णोअसण्णी जीवपए सिद्धपए य अचरिमे, मणुस्सपए चरिमे एगत्त पुहुत्तेणं । ४। ___ २६-सलेस्सो जाव सुक्कलेस्सो जहा आहारओ, णवरं जस्स
जा अत्थि । अलेस्तो जहा णोसण्णी-णोअसण्णी । ५ । ____२७-सम्मदिट्ठी जहा अणाहारओ, मिच्छादिट्ठी जहा आहारओ, सम्मामिच्छादिट्ठी एगिंदिय विगलिंदियवज्जं सिय चरिमे, सिय अचरिमे, पुहुत्तेणं चरिमा वि अचरिमा वि । ६।
भावार्थ २४-मवसिद्धिकजीव, एकवचन और बहवचन से चरम हैं, अचरम नहीं। शेष स्थानों में आहारक के समान हैं । अभवसिद्धिक सर्वत्र एकवचन और बहवचन से चरम नहीं, अचरम हैं। नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक जीव और सिद्ध, एकवचन और बहुवचन से अमवसिद्धिक के समान हैं।
२५-संज्ञी और असंज्ञी आहारक के समान हैं, . नोसंज्ञो नोअसंज्ञी जीव और सिद्ध अचरम हैं। मनुष्य एकवचन और बहुवचन से चरम हैं।
२६-सलेशी यावत् शुक्ल लेशी का कथन आहारक के समान हैं। जिस के जो लेश्या हो, वही कहनी चाहिये । अलेशी, नोसंज्ञी नोअसंज्ञी के समान हैं।
- २७-सम्यग्दृष्टि, अनाहारक के समान हैं। मिथ्यादृष्टि आहारक के समान हैं। सम्यगमिथ्यादृष्टि, एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय छोड़ कर कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम हैं। बहुवचन से वे चरम भी हैं और अचरम भी।
विवेचन-जिंसका कभी अन्त होता है, वह 'चरम' कहलाता है और जिसका कभी
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