Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
दिन अभ्यास आवश्यक है।
आठवें अध्याय में मेघों का लक्षण बतलाया गया है। इसमें 27 श्लोक हैं। इस अध्याय में मेघों की आकृति, उनका काल, वर्ण, दिशा एवं गर्जन-ध्वनि के अनुसार फलादेश का वर्णन है । बताया गया है कि शरदऋतु के मेघों से अनेक प्रकार के शुभाशुभ फल की सूचना, ग्रीष्म ऋतु के मेघों से वर्षा की सूचना एवं वर्षा ऋतु के मेघों से केवल वर्षा की सूचना मिलती है। मेघों की गर्जना को मेघों की भाषा कहा गया है। मेघों की भाषा से वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन की अनेक महत्त्वपूर्ण बातें ज्ञात की जा सकती हैं । पशु, पक्षी और मनुष्यों की बोली के समान मेघों की भाषा---गर्जना भी अनेक प्रकार की होती है । जब मेघ सिंह के समान गर्जना करें तो राष्ट्र में विप्लव, मृग के समान गर्जना करें तो शस्त्रवृद्धि एवं हाथी के समान गर्जना करें तो राष्ट्र के सम्मान की वृद्धि होती है। जनता में भय का संचार, राष्ट्र की आर्थिक क्षति एवं राष्ट्र में नाना प्रकार की व्याधियाँ उस समय उत्पन्न होती हैं, जब मेघ बिल्ली के समान गर्जना करते हो । खरगोश, शियार और बिल्ली के समान मेधों को गर्जना अशुभ मानी गयी है। नारियों के समान कोमल और मधर गर्जना कला की उन्नति एवं देश की समृद्धि में विशेष सहायक होती है । रोते हुए मनुष्य की ध्वनि के समान जब मेघ गर्जना करता निश्चयतः महामारी को सूचना समझनी चाहिए । मधुर और कोमल गर्जना शुभ-फलदायक मानी जाती है।
नौवें अध्याय में वायु का वर्णन है । इस अध्याय में 65 श्लोक हैं । इस अध्याय के आरम्भ में बायु की विशेषता, उपयोगिता एवं स्वरूप का कथन किया गया है। वायु के परिज्ञान द्वारा भावी शुभाशुभ फल का विचार किया गया है। इसके लिए तीन तिथियाँ विशेष महत्त्व की मानी गयी हैं। ज्येष्ठ पुणिमा, आषाढ़ी प्रतिपदा और अपाढ़ी पूर्णिमा। इन तीन तिथियों में वायु के परीक्षा द्वारा वर्षा, कृषि, वाणिज्य, रोग आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है। आषाढ़ी प्रतिपदा के दिन सूर्यारत के समय में पूर्व दिशा में वायु चले तो आश्विन महीने में अच्छी वर्षा होती है तथा इस प्रकार की वायु से श्रावण मास में भी अच्छी वर्षा होने की सूचना समझनी चाहिए। रात्रि के समय जब आकाश मे मेघ छाये हों और धीमी वर्षा हो रही हो, उस समय पूर्व दिशा में वायु नले तो भाद्रपद मास में अच्छी वर्षा की गुचना समझनी चाहिए। श्रावण मास में पश्चिमीय हवा, भाद्रपद मास में पूर्वीय और आश्विन में ईशान कोण की हवा चले तो अच्छी वर्षा का योग समझना चाहिए तथा फसल भी उत्तम होती है । ज्येष्ठ पूर्णिमा को निरभ्र आकाश रहे और दक्षिण वायु चले तो उस वर्ष अच्छी वर्षा नहीं होती। ज्येष्ठ पूर्णिमा को प्रात काल सूर्योदय के समय में पूर्वीय वायु के चलने से फसल खराव होती है, पश्चिमीय के चलने से अच्छी, दक्षिणीय से दुष्काल और उत्तरीय वायु से