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अष्टसहस्र
कारिका ३
अभीष्ट स्थान तक पहुँचा भी सकता है । तथैव यदि आप मीमांसक इस अनादि निधन वेद का व्याख्याता सर्वज्ञ को मान लेवें तो सभी अल्पज्ञों - असर्वज्ञों को भी सच्चा अर्थ बोध हो सकता है हम जैनों ने भी द्रव्यार्थिक नय से श्रुत को अनादि निधन माना है एवं पर्यायार्थिक नय से ही सादि सान्त भी माना है । किन्तु सर्वज्ञ को मानने से हमारे यहाँ अर्थकर्त्ता तो सर्वज्ञ ही हैं किन्तु ग्रन्थकर्त्ता चार ज्ञानधारी गणधर हैं । उन्हीं की परम्परा से अविच्छिन्न परम्परा तक ग्रन्थ प्रमाण माने जाते हैं । इसका श्लोकवार्तिक में अच्छा स्पष्टीकरण है ।
यहाँ पर तो अपौरुषेय वेद में प्रभाकर, भाट्ट एवं अद्वैतवादी इन तीनों ने ही नियोग भावना और विधिरूप से वेदवाक्यों का अर्थ किया है तथा जैनाचार्यों ने एक दूसरे के द्वारा ही उनका खंडन करा दिया है ।
आप्त परीक्षण का सारांश
मोक्षशास्त्र की आदि में मोक्ष के लिये कारणभूत एवं मंगल के लिये कारणभूत श्री उमास्वामी आचार्य द्वारा जो अतिशय गुण सहित भगवान् आप्त हैं उनकी स्तुति करने के इच्छुक श्री समंतभद्र स्वामी भगवान् से प्रश्न-उत्तर करते हुये के समान ही कहते हैं कि
हे भगवन् ! आपके जन्मकल्याणकादिकों में देव चक्रवर्ती आदि का आगमन, आकाश में गमन, छत्र, चामर, पुष्पवृष्टि आदि विभूतियाँ देखी जाती हैं किन्तु ये विभूतियाँ तो मायावी आदिकों में भी हो सकती हैं अतएव आप हमारे लिये महान् पूज्य नहीं हैं । अर्थात् – "श्रेयोमार्ग प्रणेता भगवान् स्तुत्यो महान् देवागमनभोयान चामरादि विभूतिमत्वाद्यन्यथानुपपत्तेः " इसमें 'देवागमनभोयान चामरादि विभूतिमान् की अन्यथानुपपत्ति होने से यह हेतु आगमाश्रय होने से असिद्ध है क्योंकि सभी लोग अपने-अपने आगम को प्रमाण मानते हैं । यदि कोई तटस्थ जैनी यों कहे कि वास्तविक आगम कथित विभूतिमान् हेतु मायावीजनों में सम्भव नहीं है क्योंकि साधारण में असंभवी असाधारण विभूतियाँ तीर्थंकर भगवान की हैं इसलिये इस श्लोक का अर्थ ऐसा करना चाहिये कि "देवागम आदि विभूतियाँ जो आप में हैं सो मायावीजनों में नहीं देखी जाती हैं अतएव आप हमारे लिये महान् हैं इस पर श्री विद्यानन्द स्वामी कहते हैं कि इस "विभूतिमत्वात्" हेतु को विपक्ष से असम्भवी आप किस प्रमाण से निश्चित करते हैं, प्रत्यक्ष प्रमाण से या अनुमान प्रमाण से ? इन दोनों से तो आप सिद्ध नहीं कर सकते । यदि आगम प्रमाण से सिद्ध करें तब तो हमने पहले कहा ही है। कि यह हेतु आगमाश्रय होने से असिद्ध है ।
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