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विधिवाद ]
प्रथम परिच्छेद
प्रतिपत्तुम्'--केवल विधिप्रतिपत्तेरेवान्यप्रतिषेधप्रतिपत्तिरूपत्वात्—केवलभूतलप्रतिपत्तेरेव घटाभावप्रतियत्तिसिद्धेः । न ह्ययं प्रतिपत्ता किञ्चिदुपलभमानः पररूपैः सङ्कीर्णमुपलभते—यतः प्रमाणान्तरात्तत्त्रतिषेधः साध्यते । न च सर्वथा तैरसङ्कीर्णमेव'"सदाद्यात्मनापि तदसङ्करे तस्यासत्त्वप्रसङ्गात् । परस्मात्कथञ्चिद्व्यावृत्त्यव्यावृत्त्यात्मक' च कुतश्चित्प्रमाणादुपलभमानोर्थो 13परव्यावृत्तिद्वारेण वा प्रवर्तते 14विधि' द्वारेण वेति । विधेरिवान्यापोह16स्यापि प्रवृत्त्यङ्गत्वोपपत्तेर्न विधेरेव प्रधान्यम्-विधात्रेव प्रत्यक्षमुपनिषद्वाक्यं चेति नियमस्यासम्भवात्___18अन्यथा 1 ततो विद्यावदविद्याविधानानुषङ्गात् ।
ज्ञान सिद्ध है। यह जानने वाला पुरुष कुछ जलादि वस्तु को प्राप्त करता हुआ पररूप से संकीर्णसहित वस्तु को प्राप्त नहीं करता है कि जिससे भिन्न प्रमाण से उसका प्रतिषेध सिद्ध किया जावे अर्थात् केवल भूतलादि को जानता हुआ अथवा देखता हुआ मनुष्य पररूप घटादिकों से सहित उसको नहीं देखता है कि जिससे अन्य प्रमाण से पररूप का प्रतिषेध सिद्ध किया जावे मतलब स्वयं ही पररूप का प्रतिषेध हो जाता है।
[ इस पर किसी की शंका यह है कि हे स्याद्वादिन् ! शुद्ध भूतल घटादि पररूप से सर्वथा
__ असंकीर्ण-रहित ही रहेगा । इस पर आचार्य कहते हैं कि ]सर्वथा घटादिकों से रहित ही हो ऐसा एकांत नहीं है, अन्यथा सत्त्व, प्रमेयत्व, वस्तुत्व आदि से भी उसका संकर न मानने पर तो वे (भूतलादि) भी असत् रूप हो जावेंगे। पररूप से कथंचित् व्यावृत्ति अव्यावृत्ति स्वरूप वस्तु को किसी प्रत्यक्षादि प्रमाण से प्राप्त करता हुआ प्रयोजनार्थी मनुष्य पर की व्यावृत्ति रूप से अथवा विधि रूप से प्रवृत्ति करता है अर्थात् जलादि में “यह मरीचिका नहीं है" अथवा "जल है" इस प्रकार से प्रवत्ति करता है इसलिए विधि के समान ही अन्यापोह–प्रतिषेध भी प्रवृत्ति का अंग सिद्ध हो गया है अतः विधि ही प्रधान नहीं है, क्योंकि विधाता-ब्रह्म ही प्रत्यक्ष
1 कुतः । (ब्या० प्र०) 2 जलादिकम् । 3 सहितम् । 4 पश्यति । (ब्या० प्र०) 5 किञ्चित्केवलभूतलादिकं जानन पश्यन् वायं प्रमाता पुमान् पररूपैर्घटादिकः सकुलं न पश्यति यतः कुतोन्यस्मात्प्रमाणात्पररूपप्रतिषेधः साध्यते ? अपि तु न कुतोपि । 6 पर आह । -तहि हे स्याद्वादिन् ! शुद्धभूतलंघटादिपररूपैः सर्वथाऽसङ्कीर्ण मेवेति पृष्टे स्याद्वादी वदति ।-नैवम् । कस्मात् ? सत्त्वप्रमेयत्ववस्तुत्वादिना कृत्वा भूतलस्य पररूपैः सहाऽमेलने सति भूतलस्याप्यसत्त्वमायाति यतः। 7 अन्यथा। (ब्या० प्र०) 8 अन्यथा। 9 जलादिवस्तुनि सत्तायाः अभावो जायते यतः । (ब्या० प्र०) 10 इष्टेतरात् । पररूपात् । 11 व्यावृत्ताव्यावृत्तात्मकं इति पा० । पररूपैावृत्तं सदाद्यात्मनाऽव्यावृत्तं च । (ब्या० प्र०) 12 प्रत्यक्षात् । 13 इदं मरीचिकादिकं न भवतीति । (ब्या० प्र०) 14 इदं जलं भवतीति । (ब्या० प्र०) 15 सदाद्यात्मना। 16 प्रतिषेधस्यापि । 17 (प्रथमान्तम्) आहुविधात प्रत्यक्षं न निषेद्ध विपश्चितः। नैकत्वे आगमस्तेन प्रत्यक्षेण प्रबाध्यते इति विधिवादिप्रतिपादित वाक्यस्यार्थस्य नियमस्यासम्भवात् । 18 अन्यथा, नियमः सम्भवति चेत्तदा ततो विधातुः सकाशादविद्याविधानमनुषजति। 19 प्रत्यक्षादुपनिषद्वाक्याद्वा। 20 विधायकमेवोपनिषद्वाक्यं यतः । (ब्या० प्र०)
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