Book Title: Ashtsahastri Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 437
________________ ३५४ ] अष्टसहस्री [ कारिका ६ भावार्थ:-नैयायिकों ने हेतु के पाँच अवयव माने हैं। १ पक्षधर्मत्व, २ सपक्ष सत्त्व, ३ विपक्ष व्यावृत्ति, ४ अबाधित विषयत्व, ५ असत्प्रतिपक्षत्व। इसी प्रकार बौद्धों ने उपरोक्त पांच अवयवों में से आदि के तीन अवयव माने हैं किन्तु जैनाचार्यों ने "अन्यथानुपपत्तिः" एक लक्षण हेतु का माना है। इस अन्यथानुपपत्ति लक्षण वाले हेतु में पांचों अवयव नहीं है। तो भी हेतु साध्य को सिद्ध करने वाला सच्चा हेतु है और यदि हेतु में पांचों या चारों आदि अवयव होकर भी अन्यथानुपपत्ति लक्षण अविनाभाव हेतु नहीं है तो हेतु अहेतु है साध्य का गमक नहीं है । सर्वज्ञसिद्धि का सारांश मीमांसक यह कहता है कि-संपूर्ण कर्मों से रहित भी आत्मा परमाणु धर्म, अधर्म आदि अतीन्द्रिय पदार्थों को कैसे जानेगा? इन अतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान तो वेद वाक्यों से ही होता है। अतएव जगत में कोई सर्वज्ञ नहीं है । इस पर आचार्य समाधान करते हैं कि सूक्ष्म परमाणु आदि एवं अंतरित राम-रावाणदि तथा दूरवर्ती-सुमेरू पर्वत आदि परोक्ष पदार्थ किसी न किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं क्योंकि वे अनुमान ज्ञान के विषय हैं-अग्नि आदि के समान एवं हे भगवन् ! वे पदार्थ जिनके प्रत्यक्ष हैं वह आप ही निर्दोष सर्वज्ञ हैं क्योंकि आप के वचन युक्ति शास्त्र से अविरोधी हैं तथा आपका मत, संसार, मोक्ष एवं उनके उपाय प्रत्यक्षादि से बाधित नहीं होते हैं । ___यदि कोई कहे कि अत्यन्त परोक्ष पदार्थ अनुमेय नहीं हो सकते अतः अनुमेयत्व हेतु भागासिद्ध है। यह कथन ठीक नहीं है। कारण कि सूक्ष्मादि पदार्थ अनुमेय हैं क्योंकि श्रुत-ज्ञान के विषय हैं एवं श्रुतज्ञान मतिज्ञान पूर्वक ही होता है। अतएव श्रुतज्ञान के विषयभूत अनुमेय सूक्ष्मादि पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष सिद्ध ही हैं । मीमांसक कहता है कि "कोई भी सूक्ष्मादि पदार्थों का साक्षात्कार करने वाला नहीं है क्योंकि वह प्रमेय है, या अस्ति रूप है, या वस्तु रूप है । जैसे हम लोग।" इस पर जैनाचार्य कहते हैं कि ये हेतु तो हमारे सर्वज्ञ को ही सिद्ध करते हैं । तथाहि । "सूक्ष्मादि पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं क्योंकि प्रमेयरूप हैं, अस्तित्व रूप हैं या वस्तु रूप हैं-स्फटिक आदि की तरह।" तथा सर्वज्ञ भगवान् अतीन्द्रिय ज्ञान से सूक्ष्मादि पदार्थों को जानते हैं इन्द्रिय ज्ञान से नहीं, क्योंकि इन्द्रियाँ तो वर्तमान के प्रतिनियत पदार्थ को ही विषय करती हैं सभी को नहीं । अतः इन्द्रिय ज्ञान से कोई सर्वज्ञ नहीं बन सकता है । इस बात का स्पष्टीकरण सन्निकर्ष खंडन में विशेष रूप से है। एवं आप सर्वज्ञ अहंत ही निर्दोष हैं। बुद्ध, कपिल आदि नहीं हैं क्योंकि उनके वचन युक्ति एवं शास्त्र से अवरोधी नहीं हैं इस प्रकार से आप ही सर्वज्ञ वीतराग हैं यह बात सिद्ध हो गयी। अतः मोक्ष और संसार तथा मोक्ष और संसार के कारण इन चारों में भगवान् के द्वारा प्रतिपादित जो मोक्षतत्त्व है वह प्रमाण से बाधित नहीं होता है क्योंकि प्रत्यक्ष से मोक्षादि तत्त्व में बाधा नहीं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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