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अष्टसहस्री
[ कारिका ६वीतरागश्च स्तोतुं युक्तो नान्य' इत्युच्यते ।
[ दूरवर्तिपदार्था यस्य प्रत्यक्षाः संति सोर्हन् भवानेव ] विप्रकर्ण्यपि भिन्नलक्षणसम्बन्धित्वादिना' कस्यचित्प्रत्यक्षं सोत्र भवानहन्नेव* । 'दृश्यलक्षणाद्भिन्न लक्षणमदृश्यस्वभावस्तत्सम्बन्धित्वेन विप्रकर्षि परमाण्वादिकम् । तथा वर्तमानात्कालाद्भिन्नः कालोतीतोनागतश्च, तत्सम्बन्धित्वेन रावणशङ्खादि । तथा दर्शनयोग्याद्देशाभिन्नदेशोऽनुपलब्धियोग्यस्तत्सम्बन्धित्वेन 10मकराकरादि। तद्भिन्नलक्षणसम्बन्धित्वादिना1 स्वभावकालदेशविप्रकर्ण्यपि12 कस्यचित्प्रत्यक्षं साधितम् । सोत्र13 भवानहन्नेव, न पुनः कपिलादय इति । एतत्कुतो निश्चितमिति चेत्, 14अन्येषां न्यायागमविरुद्धभाषित्वात् * । ये न्यायागमविरुद्धभाषिणस्ते न निर्दोषा यथा 1 दुर्वैद्यादयः, तथा 'चान्ये
भगवान के इष्ट तत्त्व हैं जो की प्रसिद्ध प्रमाण से एवं यूक्ति और शास्त्र से अबाधित रूप सिद्ध होते हए भगवान के वचनों को यक्ति शास्त्र से अविरोधो ही सिद्ध करते हैं एवं यक्ति-शास्त्र से अविरोधीपना ही भगवान के निर्दोषत्व को सिद्ध करता है। इसलिये हे भगवन ! वे निर्दोष सर्वज्ञ वीतराग आप ही स्तवन करने योग्य हैं अन्य बुद्ध कपिल आदि नहीं है इस प्रकार कहा जाता है।
[ दूरवर्ती पदार्थ जिसके प्रत्यक्ष हैं वे अहंत आप ही हैं ] भिन्न लक्षण सम्बन्धी आदि रूप से विप्रकर्षा भी पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष हैं यहाँ वे अहंत भगवान् आप ही हैं।
दृश्य लक्षण (घटादि) से जिनका लक्षण भिन्न है ऐसे अदृश्य स्वभाव वाले पदार्थ अर्थात् अदृश्य स्वभाव सम्बन्धी विप्रकर्षी (परोक्ष-दूरवर्ती) पदार्थ परमाणु आदिक हैं एवं पिशाचादिक स्वभाव विप्रकृष्ट हैं। तथा वर्तमान काल से भिन्न अतीत और अनागत काल हैं उन सम्बन्धी रावण, शंख, चक्रवर्ती आदिक काल विप्रकृष्ट हैं तथैव देखने योग्य देश से भिन्न देश, अनुपलब्धि योग्य हैं तत्सम्बन्धी अर्थात् उन दूर देश सम्बन्धी लवण समुद्र आदि देश विप्रकृष्ट हैं। उस दृश्य से भिन्न लक्षण सम्बन्धी आदि रूप स्वभाव से, काल से एवं देश से विप्रकर्षी-दूरवर्ती भी पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष हैं यह सिद्ध किया है इस विषय में वे अहंत आप ही हैं, न कि बुद्ध कपिलादिक ।
यह निश्चय आपने कैसे किया ? ऐसा प्रश्न होने पर अन्य सभी न्याय और आगम से विरुद्ध बोलने वाले हैं। "जो न्याय और आगम से विरुद्ध बोलने वाले हैं वे निर्दोष नहीं हैं जैसे दुवैद्य आदि ।
1 बुद्धादिः । 2 मया। भद्राकलंकदेवैः-दि. प्र.। 3 काल देश । (ब्या० प्र०) 4 भगवानिति पाठान्तरम् । 5 घटादेः। 6 घटादेः। (ब्या० प्र०) 7 आदिशब्देन पिशाचादि। 8 शङ्कः, शङ्कचक्रवर्ती। 9 देशांतरं। (ब्या० प्र०) 10 विप्रकर्षि। 11 च इति पाठोधिकः । दि. प्र.। 12 दूरतामापन्नमपि । 13 जगति । (ब्या० प्र०) 14 कपिलादीनां-दि. प्र.। 15 कपिलादयः पक्षः न भवंतीति साध्यो धर्मः, न्यायागमविरुद्धभाषित्वात् । ये न्यायागमविरुद्धभाषिणस्ते न निर्दोषाः दुवैद्यदु मित्तिकादयः न्यायागमविरुद्धभाषिणश्चते तस्मान्न निर्दोषा:-दि. प्र.।
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