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जिनवाणी स्तुति
- कु० माधुरी शास्त्री
हे सरस्वती माता, अज्ञान दूर कर दो । जग को देकर साता, विज्ञान पूर भर दो ॥
श्रत का भण्डार भरा, तेरे ज्ञान की गंगा में । जन मन शृंगार करा, गुरुवर मुनि चन्दा ने ॥ शृंगार सहित माता श्रुतज्ञान पूर्ण कर दो। जग को देकर साता, विज्ञान पूर भर दो ॥
हे सरस्वती० (१)
प्रभु वीर की वाणी सुन गणधर ने संवारा है । मुनिगण उस पथ पर चल निजज्ञान सुधारा है ॥ निज ज्ञान किरण दाता, आलोक ज्ञान भर दो । जग को देकर साता, विज्ञान पूर भर दो । हे सरस्वती ०
(२)
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節
चंदन चन्दा गंगा तन शीतल कर सकते । मुक्ता मालायें भी नहि मन को हर सकते ।। मन शांत सुरभि दाता, शारद माँ का वर दो । जग को देकर साता, विज्ञान पूर भर दो ॥ हे सरस्वती० (३)
आर्यिका ज्ञानमती स्तुति - कु० माधुरी शास्त्री
गौरवमयी पद जिन्होंने प्राप्त करके | संसार में सुमति ज्ञान प्रचार करके || वैराग्यमूर्ति श्रुत के परिवेष में हैं । श्री मात ज्ञानमति को नित ही नमूं मैं ॥१॥
माँ मोहिनी जो बनीं शुभ रत्नमति थीं । सहजात्म शुद्ध रत्नत्रय युक्त मति थीं ॥ जननी सुज्ञानमति की पद रज नमूं मैं । श्री मात ज्ञानमति को नित ही नमूं मैं ||२|| श्री देशभूषण गुरु से ज्ञान पाया। श्री वीर सिन्धु मुनि से पद भान आया ।। निज नाम सार्थक किया निज ही गुणों से । श्री मात ज्ञानमति को नित ही नमूं मैं ||३||
साहित्य सर्जन किया बहु पुण्यकारी । बन ज्ञानज्योति फैली तब कीर्ति प्यारी ।। जन्बू सुद्वीप रचना में संचरूँ मैं । श्रीमात ज्ञानमति को नित ही नमूं मैं ॥ ४ ॥ श्री वीर के समवशृति में चन्दना थीं । गणिनी बनीं जिनचरण जगवंदना थी ॥ गणिनी बही पद विभूषित को नमू मैं । श्री मात ज्ञानमति को नित ही नमूं मैं ॥५॥
मुख में जिनके शारदा, सरस्वती भण्डार । चरण 'माधुरी' वंदना, करो मात स्वीकार ॥ ६ ॥
क
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