________________
४०६ ]
अष्टसहस्री
[ कारिका ६
सांख्याभिमत संसार-मोक्ष कारण के खंडन का सारांश
सांख्य ज्ञान मात्र को ही मोक्ष का कारण मानते हैं सो ठीक नहीं है। कारण कि सर्वज्ञ भगवान के क्षायिक अनंतज्ञान की पूर्णता हो जाने पर भी अघातिया कर्मों के शेष रहने से उनका परमौदारिक शरीर पाया जाता है। यदि ज्ञान उत्पन्न होते ही मोक्ष हो जावे तो यहाँ पर अवस्थान एवं उपदेश आदि नहीं घटेगा। तथा यदि ज्ञान ही एकांत से मोक्ष का कारण होवे तो सभी के आगम में दीक्षा आदि बाह्य चारित्र का अनुष्ठान एवं सकल दोषों की उपरति रूप आभ्यंतर चारित्र स्वीकार किया गया है सो व्यर्थ हो जावेगा।
हम जैनों ने “सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इस आगम सूत्र से मार्ग को अर्थात् मोक्ष के कारण को माना है। यदि मोक्ष को अकारणक कहेंगे तो सर्वदा सर्वत्र सभी जीव के मोक्ष का प्रसंग आ जावेगा । तथैव अन्य जनों का संसार कारण तत्त्व न्याय आगम से विरुद्ध है।
सांख्यों ने "मिथ्याज्ञान मात्र को ही संसार का कारण माना है' सो ठीक नहीं है । मिथ्याज्ञान की निवृत्ति हो जाने पर भी रागादि दोषों की निवृत्ति न होने से संसार का अभाव नहीं होता है। यह बात स्वयं सांख्यों ने मानी है। अतएव हम जैनों को मान्य संसार के कारण आगम में प्रसिद्ध हैं।
"मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा: बंधहेतवः' ये बंध के कारण ही संसार के कारण हैं क्योंकि संसार के कारण अनादि होते हुये भी निर्हेतुक नहीं हैं । ये कारण भव्य जीवों की अपेक्षा अंत सहित हैं एवं अभव्यों की अपेक्षा अनादि अनंत हैं। अतएव अहंत भगवान् के शासन में मोक्ष, संसार एवं दोनों के कारण सिद्ध ही है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org .