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अष्टसहस्री
[ कारिका ६कालादित्वात् पटादिवत् । तस्याकारणकत्वे सर्वदा सर्वत्र सर्वस्य सद्भावानुषंगः, परापेक्षारहितत्वादिति । 'नागमेनापि मोक्षकारणतत्त्वं बाध्यते, तस्य तत्साधकत्वात् “सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः" इति वचनात् ।
भी है-'बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्याम् कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः' अर्थात् बंध के हेतु का अभाव एवं निर्जरा के द्वारा संपूर्ण कर्मों का नाश हो जाना इसी का नाम मोक्ष है।" इस प्रकार तत्व महाशास्त्र में कहा है । उसी प्रकार आगम प्रमाण से भी मोक्षतत्व बाधित नहीं होता है क्योंकि मोक्ष तत्व के सद्भाब का प्रतिपादक आगम उपलब्ध है।
भावार्थ-यद्यपि मोक्ष इन्द्रिय प्रत्यक्ष से नहीं दिखता है तो भी अनुमान एवं आगम से सिद्ध है। राजवार्तिक में भी श्री भट्टाकलंक देव ने इसी बात को स्पष्ट किया है। “कार्यविशेषोपलंभात् कारणान्वेषण प्रवृत्तिरिति चेन्न अनुमानतस्तत्सिद्धर्घटीयन्त्र भ्रांतिनिवृत्तिवत्" ॥६॥ अर्थात्
प्रश्न-मोक्ष जब प्रत्यक्ष से दिखायी नहीं देता तब उसके मार्ग का ढूंढना व्यर्थ है ? उत्तरयद्यपि मोक्ष प्रत्यक्ष सिद्ध नहीं है फिर भी उसका अनुमान किया जा सकता है । जैसे घटीयंत्र-रेहट का घूमना उसके धुरे के घूमने से होता है । और धुरे का घूमना उसमें जुते हुए बैल के घूमने पर : यदि बैल का धूमना बन्द हो जाय तो धुरे का घूमना रुक जाता है और धुरे के रुक जाने पर घटीयंत्र का घमना बन्द हो जाता है। उसी तरह कर्मोदय रूपी बैल के चलने पर ही चार गति रूपी धुरे का चक्र चलता है और चतुर्गति रूपी धुरा ही अनेक प्रकार की शारीरिक मानसिक आदि वेदनायें रूपी घटीयंत्र घुमाता रहता है । कर्मोदय की निवृत्ति होने पर चतुर्गति का चक्र रुक जाता है। और उसके रुकने से संसार रूपी घटीयंत्र का परिचलन समाप्त हो जाता है इसी का नाम मोक्ष है इस तरह साधारण अनुमान से मोक्ष की सिद्धि हो जाती है।
समस्त शिष्टवादी अप्रत्यक्ष होने पर भी मोक्ष का सद्भाव स्वीकार करते हैं और उसके मार्ग का अन्वेषण करते हैं। जिस प्रकार भावी सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण आदि प्रत्यक्ष सिद्ध नहीं है फिर भी आगम से उनका यथार्थ बोध कर लिया जाता है उसी प्रकार मोक्ष भी आगम से सिद्ध हो जाता है। यदि प्रत्यक्ष न होने के कारण मोक्ष का निषेध किया जाता है तो सभी को स्वसिद्धान्त विरोध होगा, क्योंकि सभी वादी कोई न कोई अप्रत्यक्ष पदार्थ मानते ही हैं। "आगमात्प्रतिपत्तेः" । प्रत्यक्षोऽनुपलभ्यं मानोऽिप मोक्षः आगमादस्तीति निश्चीयते । प्रत्यक्ष से उपलब्ध न होते हुए भी 'मोक्ष' हैंऐसा आगम से निश्चय किया जाता है।
तथैव मोक्ष के कारण सम्यग्दर्शनादि एवं संवर निर्जरा तत्त्व भी प्रमाण से विरुद्ध नहीं है प्रत्यक्ष से कारण के बिना मोक्ष की प्रतिपत्ति-ज्ञान का अभाव है क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण से मोक्ष के
1 द्रव्यक्षेत्रकालतीर्थादिसामग्री विना मोक्षो न भवतीत्यतः सकारणको मोक्षः। 2 प्रसिद्धप्रामाण्येन । (ब्या० प्र०) 3 मोक्षकारणमित्यर्थः ।
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