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दोष-आवरण के अभाव पूर्वक सर्वज्ञसिद्धि ] प्रथम परिच्छेद
[ ३४६ सामान्यात्मनोऽसम्भवाद्वर्णेषु' । 'तदयमनुमानमुद्रां सर्वत्र भिनत्तीति नानुमानविचारणायामधिकृतः स्यात् । 'अविवक्षितविशेषस्य पक्षीकरणे समः 'समाधिरित्यलमप्रतिष्ठितमिथ्याविकल्पौधैः' * । यथैव हि शब्दस्याविवक्षितसर्वगतत्वासर्वगतत्वविशेषस्याकृतकत्वादिहेतुना नित्यत्वे साध्ये न कश्चिद्दोषः स्यात्, नाप्यविवक्षितामूर्त्तत्वेतरविशेषस्य 10सर्वत्रोपलभ्यमानगुणत्वादिना" सर्वगतत्वे, तथैवाविवक्षितार्हदनर्हद्विशेषस्य कस्यचित्पुरुषस्य विप्रकृष्टार्थसाक्षात्करणेपि साध्येनुमेयत्वादिहेतुना न 'कञ्चिद्दोषं पश्यामोन्यत्राप्रतिष्ठितमिथ्याविकल्पौघभ्यः 1"प्रकृतसाधनाप्रतिबन्धिभ्यः, 1 तेषामप्रतिष्ठितत्वात् 6, 17साधनाभासे इव सम्यक्साधनेपि 18स्वाविषयेवतारात् । ततो निरवद्यमिदं साधनं कस्यचित्सूक्ष्मादिसाक्षात्कारित्वं साधयति । सामान्यात्मा भी वर्गों में असंभव ही है। इसलिये आप मीमांसक के यहाँ अपने पक्ष में भी समान ही दोषों का प्रसग आने से आप मीमांसक अनुमान मुद्रा का भेदन कर देते हैं। अतः अनुमान के विचार करने में आपको अधिकार ही नहीं है । तथा यदि आप कहें कि
अविवक्षित है विशेषता जिसकी अर्थात् सर्वगतत्व, असर्वगतत्व आदि विशेषताओं से रहित सामान्य मात्र को ही हम पक्ष बनाते हैं तो समान ही समाधान है। इसलिये अप्रतिष्ठित मिथ्या विकल्पों के समह से बस होवें। क्योंकि जिस प्रकार से सर्वगतत्व, असर्वगतत्व की विवक्षित नहीं है ऐसे शब्दों को अकृतत्व आदि हेतु के द्वारा नित्य सिद्ध करने में कोई दोष नहीं है। एवं मूर्त, अमूर्त का भेद विवक्षित नहीं है जिनमें ऐसे शब्दों को सर्वत्र उपलब्धि को प्राप्त गुणत्व आदि के द्वारा सर्वगत रूप सिद्ध करने में कोई दोष नहीं है । अर्थात् “नित्य शब्द सर्वगत होता है क्योंकि द्रव्य रूप होने से अमूर्तिक है जैसे आकाश" इत्यादि ।
उसी प्रकार से जिसमें अर्हत एवं अनर्हत की विशेषता विवक्षित नहीं है, ऐसा कोई पुरुष अनुमेयत्व आदि हेतु के द्वारा विप्रकृष्ट पदार्थों का साक्षात्करण करने वाला है इस विषय में केवल प्रकृत साधन (अनुमेयत्व) के अविरोधी अप्रतिष्ठित मिथ्या विकल्पों के समूह के अतिरिक्त हमें कोई दोष नहीं दिखता है क्योंकि ये विकल्प (भेद) अप्रतिष्ठित हैं। साधनाभास में अपने अविषय के समान सम्यक साधन में भी अपने विषय का अवतार नहीं होता है । अतः हमारा यह अनुमेयत्व हेतु निर्दोष है और किसी व्यक्ति विशेष को सूक्ष्मादि पदार्थों का साक्षात्कारी होना सिद्ध करता है।
1 सामान्यात्मनोरसंभवादिति वा पा०। दि. प्र.। 2 यतो मीमांसकस्य स्वपक्षेपि समानं तत्तस्मादयं मीमांसकः । 3 स्वपक्षेपि परपक्षवत । 4 योग्यः । (ब्या० प्र०) 5 अविवक्षितः सर्वगतत्वासर्वगतत्वादिविशेषो यस्य स तस्य । 6 शब्दस्य । (ब्या० प्र०)7 हे मीमांसक । 8 अव्यवस्थित । (ब्या० प्र०) १ अर्हतोऽनहतो वेत्यादिरूपः । 10 सर्वत्रोपलभ्यमानमाकाशम् । 11 नित्यः शब्दः सर्वगतो भवति, द्रव्यत्वे सत्यमूर्ततादाकाशवदित्यादिना च । 12 न केनापि कंचिद्दोषं इति पा. दि. प्र.। 13 विना। 14 प्रकृतं साधनमनुमेयत्वम् । 15 विकल्पौघानाम् । 16 अप्रतिष्ठितत्वं कुतः ? (ब्या० प्र०) 17 अप्रतिष्ठितत्वे हेतुरयम् । 18 मिथ्याविकल्पौघाविषये
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