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अष्टसहस्री
. [ कारिका ३पूनरारोप्यमाणो गौण इति 'चेन्न-विशेषाकारस्यापि तत्र गौणत्वप्रसङ्गात् । शक्यं हि वक्तुम्-प्रत्यक्षबुद्धौ प्रतिभासमानो विशेषाकारो 'मुख्यो, बहिः स्वलक्षणेषु स एवाध्यारोप्यमाणो गौण इति । नन्वेवमपि ज्ञानविशेषाः 'परमार्थतः सन्तः सिद्धाः ? बहिरर्थविशेषास्तु न वास्तवा इति विज्ञानवादिमतमायातं तहि10--विज्ञानसामान्यं वस्तुभूतं न बहिरर्थसामान्यमिति सामान्यविशेषात्मकं विज्ञानं परमार्थसदायातं 12न 13क्षणिकविज्ञानस्वलक्षणवादि
सौगत-विकल्प बुद्धि में प्रतिभास मान सामान्याकार-(अन्यापोह बाह्यार्थ) मुख्य है पुनः अणक्षणिक रूप स्वलक्षणों में आरोपित किया गया सामान्य गौण है।
भाट्ट-ऐसा नहीं कहना। अन्यथा-उन अणु क्षणिकों में विशेषाकार-स्वलक्षण गौण हो जावेगा । हम ऐसा भी कह सकते हैं कि प्रत्यक्ष बुद्धि-निर्विकल्प ज्ञान में प्रतिभास मान विशेषाकार मख्य है, क्योंकि वह निर्विकल्प ज्ञान का ही विशेषाकार है बाह्य पदार्थ का नहीं है, बाह्य स्वलक्षणों में "यह वही है" ऐसा अध्यारोपित किया गया आकार गौण है।
सौत्रान्तिक बौद्ध-इस प्रकार से भी सामान्य और विशेष का बाह्य में सत्व न होने से ज्ञान विशेष परमार्थ सत् सिद्ध है किन्तु बाह्य अर्थ विशेष वास्तविक नहीं है ।
इस प्रकार से विज्ञानवादियों का मत आ जाता है जो हमें इष्ट नहीं है।
भाद्र-तब तो विज्ञान सामान्य ही वास्तविक है किन्तु बाह्य अर्थ सामान्य वस्तु भूत नहीं है इस प्रकार से सामान्य विशेष ज्ञान ही पारमार्थिक सत् है किन्तु क्षणिकविज्ञान स्वलक्षणवादी सौत्रांतिक का मत सिद्ध नहीं होता है अर्थात् ज्ञान में पूर्व में सामान्य को स्वतः स्वीकार किया है। विकल्प बद्धि में प्रतिभास मान सामान्याकार मुख्य है इसलिए परमार्थसत् है यह बात सिद्ध हो जाती है क्योंकि विकल्प ज्ञान में सामान्य का आकार स्वीकृत किया है निर्विकल्प में नहीं माना है अतः कोई दोष नहीं है ऐसा भी नहीं मानना, विकल्प ज्ञान के स्वरूप में निर्विकल्प रूप से बाह्य सामान्याकार भी मुख्यत्व रूप से स्वीकृत किया गया होने से परमार्थ से सामान्य विशेषात्मक ज्ञान सिद्ध हो गया इसलिए अन्तर्बाह्य वस्तु के सिद्ध न होने से सौत्रांतिक का मत सिद्ध नहीं होता है।
सौगत-विकल्प ज्ञान में भी होने वाले सामान्याकार-घट पटादि आकार वास्तविक नहीं हैं
• 1 भाट्टः। 2 स्वलक्षणक्षणस्य । 3 अणुक्षणिकेषु । 4 निर्विकल्पकज्ञाने। 5 निर्विकल्पज्ञानस्यैव विशेषाकारो न तु बहिरर्थस्य। 6 (सौत्रान्तिक:) सामान्यविशेषयोर्बहिरसत्त्वप्रकारेण । 7 परमार्थसन्त इति पाठान्तरम् । 8 योगाचारमतम् । 9 भाट्टः । 10 सौत्रांतिकमतमाशंकय भट्टेनोच्यते । (ब्या० प्र०) 11 ज्ञाने पूर्व सामान्यस्य स्वयमभ्युपगतत्वात् विकल्पबुद्धौ प्रतिभासमान: सामान्याकारो मुख्य इति परमार्थसदायातम्-विकल्पज्ञाने सामान्याकारस्याभ्युपगमात् निर्विकल्पके तदनभ्युपगमाददोष इति न मन्तव्यम्-विकल्पज्ञानस्य स्वरूपे निर्विकल्पकत्वेन बहिः सामान्याकारस्यापि मुख्यत्वाभ्युपगमेन परमार्थतः सामान्यविशेषात्मनो ज्ञानस्य समायातत्वात् । 12 सौत्रान्तिकस्य । 13 स्वलक्षण । (ब्या० प्र०)
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