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तत्त्वोपप्लववाद ] प्रथम परिच्छेद
[ १६७ तावत्प्रत्यक्षान्नयन'कुशलादे: संवेदनकारणस्यातीन्द्रियस्यादुष्टतायाः प्रत्यक्षीक मशक्तेः । नानुमानात्, तदविनाभाविलिङ्गाभावात् । विज्ञानं तत्कार्य लिङ्गमिति चेन्न', विज्ञान
वह प्रत्यक्ष ज्ञान उनकी निर्दोषता को प्रत्यक्ष करने में असमर्थ है । अनुमान से भी वह निर्दोषता ग्रहण नहीं की जाती है क्योंकि उसके अविनाभावी लिंग का अभाव है अर्थात् इंद्रियों से जिसे देख नहीं सकते उसका इसके साथ सम्बन्ध है इत्यादि कैसे निर्णय करेंगे और हेतु किसे बनायेंगे ?
विशेषार्थ-तत्त्वोपप्लववादी स्वयं कुछ तो मानता नहीं है फिर भी बैठे-बैठे जैन, मीमांसक आदि तत्त्ववादियों से कुतर्क कर रहा है। इसी बात को श्लोकवार्तिक ग्रंथ में श्री विद्यानन्द स्वामी ने अच्छी तरह से बतलाया है। यथा-"कथमव्यभिचारित्वं वेदनस्य निश्चीयते ? किमदुष्टकारकसंदोहोत्पाद्यत्वेन बाधारहितत्वेन प्रवृत्तिसामर्थेनान्यथा वेति प्रमाणतत्त्वे पर्यनुयोगाः संशयपूर्वकास्तदभावे तदसंभवात्, किमयं स्थाणुः किं वा पुरुष इत्यादेः पर्यनुयोगवत् । संशयश्च तत्र कदाचित् क्वचिन्निर्णयपूर्वकः स्थाण्वादिसंशयवत् । तत्र यस्य क्वचित् कदाचिददुष्टकारकसंदोहोत्पाद्यत्वादिना प्रमाणत्वनिर्णयो नास्त्येव तस्य कथं तत्पूर्वक: संशयः, तदभावे कुतः पर्यनुयोगा: प्रवर्तेरन्निति न परपर्यनुयोगपराणि बृहस्पतेः सूत्राणि स्युः ।"
उपप्लववादी जन अंतरंग बहिरंग प्रमाण, प्रमेयतत्त्वों को मानने वाले जैन, मीमांसक, नैयायिक आदि के प्रति उपाय, उपेयतत्त्वों का खंडन करने के लिए इस प्रकार से कुप्रश्न उठाते हैं कि
द अव्यभिचारी (मिथ्याज्ञान से भिन्न सच्चे) ज्ञान को प्रमाण मानते हैं। पुनः यह बतलाइये कि इस ज्ञान की सच्चाई का निर्णय आप लोग कैसे करते हैं ? क्या निर्दोष कारणों के समुदाय से ज्ञान बनाया गया है, इस कारण प्रमाण है या बाधाओं से रहित है अत: प्रमाण है ? अथवा जिसको जाने, उसमें प्रवृत्ति करे और उसी ज्ञेय रूप फल को प्राप्त करे या उस ज्ञान का सहायक दूसरा ज्ञान पैदा कर लें, इस प्रवृत्ति की सामर्थ्य से वह ज्ञान प्रमाण है ? अथवा दूसरे प्रकारों से अविसंवादी आदि रूप से वह प्रमाण है ? आखिर प्रमाण की प्रमाणता का निश्चय आप लोग इन चार कारणों के सिवा तो कर नहीं सकते हैं अतः बतलाइये क्या बात है?
___ इन चार प्रश्नों में प्रथम के दो प्रश्न तो मीमांसक के प्रति हैं क्योंकि मीमांसक ही इन दो बातों से प्रमाण की प्रमाणता मानता है अतः इसी मीमांसक और उपप्लववादो के कुछ देर तक प्रश्नोत्तर चलते रहेंगे।
1 भावेन्द्रियरूप । द्वंद्वः । पुण्यादेः । (ब्या० प्र०) 2 कौशल्यं नर्मल्यम् । 3 अदुष्टकारक । (ब्या० प्र०) 4 मीमासकः। 5 तत्त्वोपप्लववादिमतमालम्ब्य जैनः प्राह। 6 शुक्तिकायां रजतज्ञानं कार्यलिङ्ग कारणदुष्टतां साधयतीति व्यभिचारः। (ब्या०प्र०)
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