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सर्वज्ञसिद्धि ]
प्रथम परिच्छेद
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इन ' वदन्तमिव स्तोतु:' 'प्रज्ञातिशयचिकीर्षया ' भगवन्तं प्रत्याहु:' । - सूक्ष्मान्तरितदूरार्थाः प्रत्यक्षाः कस्यचिद्यथा । अनुमेयत्व'तोऽग्न्यादिरिति सर्वज्ञसंस्थितिः ॥५॥
सूक्ष्माः स्वभावविप्रकर्षिणोर्थाः परमाण्वादयः, अन्तरिताः कालविप्रकर्षिणो रामादयो, दूरास्तु देशविप्रकर्षिणो हिमवदादयस्ते कस्यचित्प्रत्यक्षा, अनुमेयत्वाद्यथाऽग्न्यादिरित्येवं सर्वज्ञस्य सम्यक् स्थितिः स्यात् । अथ मतमेतत्' ।
[ सूक्ष्माद्यर्था येन प्रकारेण कस्यचित् प्रत्यक्षाः दृष्टाः तेनैव साध्यतेऽन्य प्रकारेण वा ? ] "सूक्ष्मादयोर्था यथाभूताः कस्यचित्प्रत्यक्षा दृष्टास्तथाभूता एव ' तथानुमेयत्वेन साध्यन्तेऽन्यथा भूता वा ? "यथाभूताश्चेत्सिद्धसाध्यता, सूक्ष्माणां सहस्रधा भिन्नकेशाग्रादीनामन्तरितानां च प्रपितामहादीनां दूरार्थानां च हिमवदादीनां कस्यचित्प्रत्यक्षत्वप्रसिद्धेः । अन्यथाभूतानां
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उत्थानिका — इस प्रकार से कहते हुये के समान ही स्तवन करने वाले सूत्रकार श्री उमास्वामी आचार्य की बुद्धि के अतिशय को प्रकट करने की इच्छा से ही श्री समंतभद्र स्वामी कहते हैं -
कारिकार्थ — सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थ किसी न किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं क्योंकि वे अनुमान ज्ञान के विषय हैं जैसे अग्नि आदि; इस प्रकार से सर्वज्ञ सिद्धि होती है ।
सूक्ष्म – स्वभाव से परोक्ष परमाणु आदिक, अन्तरित - काल से परोक्ष राम, रावण आदिक, दूरवर्ती – देश से परोक्ष हिमवन पर्वत, सुमेरु आदिक; ये किसी न किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं क्योंकि अनुमेय हैं जैसे अग्नि आदिक । इस अनुमान वाक्य से सर्वज्ञ की सम्यक् प्रकार से सिद्धि होती है । [ सूक्ष्मादि पदार्थ जैसे किसी के प्रत्यक्ष हैं वैसे ही अनुमेय हैं या अन्य रूप से ? ]
मीमांसक - सूक्ष्मादि पदार्थ जिस प्रकार से किसी के प्रत्यक्ष देखे गये हैं उसी प्रकार से तुम उन्हें अनुमान ज्ञान का विषय सिद्ध करते हो या अन्यथा रूप से ?
यदि जिस प्रकार वे प्रत्यक्षज्ञान के विषय हैं उसी प्रकार ही वे अनुमान ज्ञान के विषय हैं ऐसा मानते हो तब तो सिद्ध साध्यता ही है । सूक्ष्म जो केश का अग्रभाग जिसके हजार टुकड़े कर दिये हैं और अन्तरित प्रपितामह अर्थात् पिता के पिता के पिता पड़दादा आदि एवं दूरवर्ती हिमवान् पर्वत आदि आधुनिक किसी न किसी व्यक्ति के प्रत्यक्ष हैं ।
यदि दूसरा पक्ष लेते हो कि वे पदार्थ अन्य रूप से ही अनुमान ज्ञान के विषय हैं तो "अनुमेयत्वात् " यह हेतु अप्रयोजक ही है । जैसे पृथ्वी, पर्वत आदि को बुद्धिमान् कारणत्व सिद्ध करने में
1 मीमांसकमुद्दिश्य यथा । ( ब्या० प्र० ) 2 सूत्रकारस्य । 3 मोक्षमार्गस्य नेतारमित्यादि प्रतिज्ञाप्रकर्षं कर्तुमिच्छया fa. J. I 4 प्रतिज्ञातिशयेति पाठान्तरम् । 5 समन्तभद्राचार्याः । 6 अनुमातुं योग्यत्वात् । 7 मीमांसकस्य । 8 नियतदेशाद्याकाराः । 9 कस्यचित्प्रत्यक्षत्वप्रकारेण । 10 अनियतदेशाद्याकाराः । 11 तथाभूता इति पा० । ( ब्या० प्र० ) 12 आधुनिकस्य ।
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