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सर्वज्ञसिद्धि ।
प्रथम परिच्छेद
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[ इंद्रियानिंद्रयानपेक्षप्रत्यक्षेण सूक्ष्मादिपदार्थाः ज्ञायते इति स्याद्वादिभिः कथ्यते ] इति' केचित्तेपि न सम्यग्वादिनः, सूक्ष्माद्यर्थानामिन्द्रियजप्रत्यक्षेण कस्यचित्प्रत्यक्षत्वासाधनात्तत्पक्षनिक्षिप्तदोषानवतारात् । तथा 'साधयतां स्याद्वादिभिरपि तद्दोषसमर्थनात् । 'नाप्यतीन्द्रियप्रत्यक्षेण कस्यचित्प्रत्यक्षत्वं साध्यते येनाप्रसिद्धविशेषणः पक्षः साध्यशून्यश्च दृष्टान्तः स्यातु, 'प्रत्यक्षसामान्येन कस्यचित्सूक्ष्माद्यर्थप्रत्यक्षत्वसाधनात् । प्रसिद्ध च सूक्ष्माद्यर्थानां सामान्यतः कस्यचित्प्रत्यक्षत्वे सर्वज्ञत्वस्य सम्यस्थित्युपपत्तेस्तत्प्रत्यक्षस्येन्द्रियानिन्द्रियानपेक्षत्वं सिध्यत्येव । तथा हि । योगिप्रत्यक्षमिन्द्रियानिन्द्रियानपेक्षं,सूक्ष्माद्य
विशेषण वाला हो जाता है क्योंकि दष्टान्त में "अतीन्द्रिय ज्ञान प्रत्यक्षत्व" असिद्ध ही है। जिस प्रकार से सांख्य को "अनित्य शब्द" असिद्ध है क्योंकि सांख्य के मत में प्रत्येक पदार्थ का आविर्भाव और तिरोभाव ही माना है। उनके यहाँ किसी भी पदार्थ को अनित्य नहीं माना है।
एवं दृष्टान्त भी साध्य शून्य ही है क्योंकि अग्नि आदि पदार्थ अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष के विषय नहीं हैं। यहाँ अतीन्द्रिय शब्द से मानस अर्थ लेना चाहिए। [ इन्द्रिय और भनिन्द्रिय की अपेक्षा से रहित सामान्य प्रत्यक्ष के द्वारा ही अतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान होता
है इस प्रकार जैनाचार्य कहते हैं। ] जैन- इस प्रकार का कथन करने वाले आप मीमांसक भी सम्यग्वादी नहीं हैं । सूक्ष्मादि पदार्थ इन्द्रियज प्रत्यक्ष के द्वारा किसी के प्रत्यक्ष हैं ऐसा हम मानते ही नहीं हैं। इसलिए उस पक्ष में दिये गये दोष हम जैनों के यहाँ सम्भव ही नहीं हैं। उस प्रकार के पक्ष को मानने वाले नैयायिकों के लिए हम स्याद्वादियों ने भी उन दोषों का समर्थन ही किया है और हम लोग अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष (मानस प्रत्यक्ष) के द्वारा भी किसी के सूक्ष्मादि पदार्थों का प्रत्यक्षपना सिद्ध नहीं करते हैं कि जिससे हमारा पक्ष अप्रसिद्ध विशेषण वाला होवे एवं दृष्टांत साध्य से शून्य होवे । अर्थात् हमारे यहाँ ये दोष नहीं आते हैं।
मीमांसक--तब आप जैन सूक्ष्मादि पदार्थों का प्रत्यक्ष होना कैसे सिद्ध करते हैं ?
जैन-प्रत्यक्ष सामान्य के द्वारा हम जैन किसी के सूक्ष्मादि पदार्थों का प्रत्यक्ष होना सिद्ध करते हैं।
सूक्ष्मादि पदार्थ सामान्य से किसी के प्रत्यक्ष हैं इस बात के सिद्ध हो जाने पर सर्वज्ञत्व की सम्यक् प्रकार से व्यवस्था बन जाती है और सर्वज्ञ का अस्तित्व सिद्ध हो जाने से प्रत्यक्ष ज्ञान इन्द्रिय
1 स्याद्वादिनः प्राहुः 'इति केचिन्मीमांसकास्तेपि न सम्यग्वादिनः, इति । 2 इन्द्रियप्रत्यक्ष । (ब्या० प्र०) 3 जनानाम् । 4 सूक्ष्माद्यर्था इंद्रियप्रत्यक्षेण कस्यचित् प्रत्यक्षा भवंति । इति (ब्या० प्र०) 5 नैयायिकानाम् । 6 साधयतां योगादीनां स्याद्वादिभिस्तस्य पक्षस्य दोषः समर्थ्यते। दि. प्र.। 7 सिद्धान्ती। 8 योगिन इन्द्रियं योगजधर्मबलात् सूक्ष्माद्यर्थं गृह्णाति । (ब्या० प्र०) 9 तहि सूक्ष्माद्यर्थानां कथं प्रत्यक्षत्वं स्थाप्यते जैनर्भवद्भिरिति मीमांसकाशङ्कायामाह प्रत्यक्षसामान्येनेत्यादि । 10 योगी=सर्वज्ञः। 11 अस्माभिः स्याद्वादिभिः । (ब्या० प्र०)
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