Book Title: Ashtsahastri Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 429
________________ ३४६ ] अष्टसहस्री | कारिका ५ [ सूक्ष्मादिपदार्थान् कः प्रत्यक्षेण जानाति, अर्हद् भगवान्, बुद्धादयो उभयव्यतिरिक्तः कश्चिद् वा ? इत्यादिप्रश्नानां विचारः ] 'ननु च कस्येदं सूक्ष्माद्यर्थप्रत्यक्षत्वं साध्यते ? अर्हतोनर्हतः' सामान्यात्मनो वा ? यदि विप्रकृष्टार्थप्रत्यक्षत्वमर्हतः साध्यते' पक्षदोषोऽप्रसिद्धविशेषणत्वम् । तत एव 'व्याप्तिर्न सिध्येत् । 'अनर्हतश्चेदनिष्टानुषंगोपि । कः पुनः सामान्यात्मा तदुभयव्यतिरेकेण यस्य विवक्षितार्थप्रत्यक्षत्वम् ? इत्येतद्विकल्पजालं "शब्दनित्यत्वेपि समानं, न केवलं सूक्ष्मादिसाक्षात्करणस्य प्रतिषेधने संशीतौ वा । "तदयमनुमानमुद्रां'5 1 भिनत्ति । न कश्चित्सूक्ष्मा विशद हैं, केवलज्ञान से अवधिज्ञान मनःपर्ययज्ञान में अन्तर केवल इतना ही है कि ये द्रव्य, क्षेत्र, आदि की मर्यादा को लिये हुए सीमित हैं एवं केवलज्ञान सम्पूर्ण लोकालोक को जानने वाला होने से असीमित-अनंत है । स्पष्टता की अपेक्षा इन तीनों में कोई अन्तर नहीं है । अन्त में निष्कर्ष यह है कि सर्वज्ञ का ज्ञान अतींद्रिय प्रत्यक्ष है यह बात यहाँ सिद्ध की गई है। [ सूक्ष्मादि पदार्थों को प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा जानने वाले कौन हैं ? अर्हत, बुद्धआदि या इनसे भिन्न अन्य कोई जन ? ] मीमांसक-यह सूक्ष्मादि पदार्थों का प्रत्यक्षपना आप किसके सिद्ध करते हैं अहंत (केवली जिन) के या अनर्हत (बुद्धादिक) के अथवा सामान्य आत्मा के ? यदि विप्रकृष्ट अर्थों - दूरवर्ती पदार्थों का प्रत्यक्षपना अर्हत में सिद्ध करते हो तब तो पक्ष में अप्रसिद्ध विशेषणत्व दोष आता है इसी से व्याप्ति की सिद्धि भी नहीं होगी। अर्थात् जहाँ-जहाँ अनुमेयत्व हेतु है वहाँ-वहाँ किसी अहंत के प्रत्यक्षपना है यह व्याप्ति नहीं बन सकेगी और यदि आप ऐसा कहें कि अनर्हत (बुद्धआदिक) के परोक्ष पदार्थों का प्रत्यक्षत्व सिद्ध करते हैं तब तो आपके यहाँ अनिष्ट का प्रसंग भी आता है क्योंकि आप जैनों के यहाँ अहंत के अतिरिक्त किसी बुद्ध, कपिल आदि में सूक्ष्मादि पदार्थों का प्रत्यक्षत्व सिद्ध करना इष्ट नहीं है। पुनः अहंत और अनहंत के अतिरिक्त सामान्यात्मा और कौन है कि जिसके आप सूक्ष्मादि परोक्ष पदार्थों का प्रत्यक्षत्व सिद्ध कर सकें ? जैन- इस प्रकार के ये विकल्प जाल आपके यहाँ शब्द को नित्य मानने रूप अनुमान में 1 मीमांसकः। 2 सूक्ष्मांतरितदूरार्थाः कस्यचिदर्हतः प्रत्यक्षाः । (ब्या० प्र०)। 3 बुद्धादेः। 4 तीत्यध्याहार्यम् 5 सूक्ष्मांतरितदूरार्थाः अर्हतः प्रत्यक्षा: प्रमेयत्वात् । यत्प्रमेयं तदर्हतः प्रत्यक्षमिति व्याप्तेरभावात् । (ब्या० प्र०) 6 यत्र यत्रानुमेयत्वं तत्र तत्र कस्यचिदहतः प्रत्यक्षत्वमिति व्याप्ति स्त्यत: पक्षदोषः। 7 बुद्धादेः । (ब्या० प्र०) 8 अपिशब्दात्पक्षदोषोपि। 9 सूक्ष्माद्यर्थानाम् । 10 जैन आह। 11 मीमांसकस्येष्टे। 12 समुच्चये। (ब्या० प्र०) 13 सर्वज्ञस्य निषेधे संशये वा । (ब्या० प्र०) 14 तत्तस्मादयं मीमांसकः । 15 तस्मात् । (ब्या० प्र०) 16 मीमांसक: सूक्ष्माद्यर्थसाक्षात्करणप्रतिषेधसंशययोः क्रमेणानुमाने द्वे रचयति (वक्ष्यमाणप्रकारेण) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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