________________
अटही
[ कारिका ३
प्रामाण्यहेतुः, 'विपर्ययेपि भावात् । मरीचिकादौ तोयज्ञाने 2 देशान्तरगमनादिना बाधानुत्पत्तावपि प्रमाणत्वाभावात् । सर्वस्य' बाधानुत्पत्तिरर्थसंवेदने प्रामाण्यकारणमिति चेन्न, तस्याः किञ्चिज्ज्ञैर्ज्ञातुमशक्तेः, शक्तौ वा तस्य सर्वज्ञत्वापत्तेरसर्वज्ञव्यवहाराभावप्रसङ्गात् ' 'सर्वदेशकालपुरुषापेक्षया' बाधकाभावनिर्णयस्यान्यथानुपपत्तेः " । इति न बाधारहितत्वेन संवेद
नस्य प्रामाण्यम |
२०८
ग्रहण करने वाला है तो भी ज्ञान की प्रमाणता का निश्चय, बाधा के न होने से है और बाधा का न होना ज्ञान की प्रमाणता से है मतलब अन्योन्याश्रय दोष आ गया। यदि ज्ञान की प्रमाणता बाधा के उत्पन्न होने से है और बाधा का न होना सत्यार्थ ग्रहण से है पुनः सत्यार्थ ग्रहण का निर्णय अन्य प्रमाण से है तब तो अनवस्था, चक्रक दोष आते ही रहेंगे ।
प्रश्न ऐसा भी होता है कि चांदी को चाँदी और सीप को सीप रूप से ग्रहण करने से बाधा की उत्पत्ति नहीं है अथवा बाधक कारण नहीं मिलने से बाधा नहीं है ?
यह चाँदीको चाँदी ही समझ रहा है यह निर्णय भी कौन देवे ? यदि कहो बाधक कारण नहीं मिले हैं तब तो किसी ने सीप को चाँदी मानकर बहुत दिनों तक पेटी में रख रखा, उसका उपयोग करने का अवसर नहीं मिला, बाधक कारण नहीं बनें फिर भी वह ज्ञान प्रमाणीक नहीं है । ऐसा भी प्रश्न होता है कि किसी पदार्थ को बाधा उत्पन्न नहीं हुई इसलिये प्रमाणीक है या उसमें प्रामाणीक है ?
देखते ही जो ज्ञान होता है उसमें उसी क्षण कभी भी बाधा उत्पन्न होगी ही नहीं इसलिए
इस पर समाधान यह है कि किसी ने पुरुष को कुछ अंधेरे में ठूंठ समझा, उसी क्षण वा कुछ क्षण तक उसे उस ज्ञान में बाधा नहीं दिखी तो क्या वह ज्ञान सच्चा माना जावेगा ? अथवा किसी ने अपने शरीर और कुटुम्बियों को जीवन भर अपना मान रखा है तो क्या यह ज्ञान सच्चा है ?
दूसरी बात यह भी है कि कभी भी बाधा उत्पन्न नहीं होगी यह निर्णय कौन देवे ? हो सकता है कुछ दिन बाद उसे पुत्र की स्वार्थपरता देखकर वैराग्य हो जावे अतः मिथ्याज्ञान में कभी बाधा की उत्पत्ति हो भी जाती है और कभी नहीं भी होती है । कभी किसी को मिथ्याज्ञान में जन्म भर बाधा उत्पन्न ही नहीं होती है। सीप को चाँदी ही समझता रहता है, किन्तु इतने मात्र से - बाधा के न होने मात्र से वह ज्ञान प्रमाणीक नहीं है ?
पुनः प्रश्न होता है कि कलकत्ते आदि किसी एक देश में रहने वाले बाधा नहीं है या सर्वत्र दिल्ली, बम्बई आदि में भी रहने वाले को उस ज्ञान में भी बड़ा मजेदार ही उत्तर है । कलकत्ते के मनुष्य ने सीप को चाँदी समझा
Jain Education International
मनुष्य को उस ज्ञान में बाधा नहीं है ? इसका उसमें उसे बाधा नहीं
1 मिथ्याज्ञाने । ( ब्या० प्र०) 2 मरीचिकादेशतोऽन्यदेशांतरं । ( ब्या० प्र० ) 3 द्वितीयविकल्पः । भवेयुरिति । 5 निराकृतहेतूनां संग्रहो दर्शितः । ( ब्या० प्र० ) 6 पुरुषापेक्षबाधकाः इति पा० । 7 सर्वज्ञमन्तरेण । ( व्या० प्र०)
For Private & Personal Use Only
4 सर्वे सर्वज्ञा (ब्या० प्र०)
www.jainelibrary.org