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- अष्टसहस्री
[ कारिका ४
३०० ] बुद्धिहान्या 'हेतोय॑भिचारः, तस्याः सपक्षत्वात् । तथा हि। यस्य हानिरतिशयवती तस्य कुतश्चित्सर्वात्मना व्यावृत्तिः, यथा बुद्धयादिगुणस्याश्मनः । तथा च दोषादेहानिरतिशयवती 'कुतश्चिन्निवर्तयितुमर्हति सकलं 'कलंकमिति कथमकलंक सिद्धिर्न भवेत् ?*
__ यथा-अनुमान के सिद्ध होने पर उस अनुमान से परोपगमप्रमाण की सिद्धि होगी और उसके सिद्ध होने पर उससे व्याप्ति की सिद्धि होगी पुनः व्याप्ति की सिद्धि होने से अनुमान की सिद्धि होगी।
__ इसलिए यह आपका कथन श्रेयस्कर नहीं है कि सम्पूर्ण रूप से पृथ्वी आदि में चेतना आदि गुणों की व्यावृत्ति सिद्ध नहीं है अर्थात् सिद्ध ही है एवं पृथ्वी आदि में चेतना आदि की संपूर्णतया व्यावृत्ति के सिद्ध हो जाने पर बुद्धि को हानि से हेतु में व्यभिचार दोष नहीं आता है क्योंकि बुद्धि को भी यहाँ हमने सपक्ष में ले लिया है । तथाहि
जिसकी हानि अतिशय रूप से है उसका कहीं न कहीं परिपूर्ण रूप से अभाव पाया हो जाता है। जैसे कि पाषाण में से बुद्धि आदि का सर्वथा अभाव पाया जाता है और उसी प्रकार अतिशयवान् दोष आदि को हानि भी किसी आत्मा से संपूर्ण द्रव्यकर्म भावकर्म को पृथक् करती ही है। इस प्रकार से कर्मकलंक रहित भगवान् की अथवा अकलंक देव के वचनों की सिद्धि कैसे नहीं होगी? अर्थात् कर्मकलंक रहित सर्वज्ञ देव को भी सिद्धि होती है और अकलंक देव के वचन की भी सिद्धि होती ही है।*
भावार्थ- शंकाकार को यह कहना है कि आप जैनों ने किसी न किसी जीव विशेष में दोष और आवरण का परिपूर्णतया अभाव सिद्ध करने के लिए "अतिशायन" हेतु दिया है यह व्यभिचारी है क्योंकि जीवों में बुद्धि की भी तरतमता देखी जाती है अतः किसी न किसी जीव विशेष में बुद्धि का भी सर्वथा अभाव मानना पड़ेगा।
इस पर जैनाचार्यों ने सुंदर ढंग से समाधान कर दिया है । वे कहते हैं कि मिट्टी के ढेले, पत्थर आदि में चैतन्य गुणों का अभाव हो जाने पर अर्थात् जीवात्मा के निकल जाने पर उन मिट्टी आदि में से बुद्धि का भी सर्वथा अभाव हो जाता है क्योंकि बुद्धि-ज्ञान यह आत्मा का ही गुण है । इस पर पुनः शंकाकार कहता है कि चैतन्य आत्मा तो अमूर्तिक होने से अदृश्य है पुनः इसी मिट्टी के ढेले में से यह आत्मा निकल गई है, यह मिट्टी सर्वथा निर्जीव हो गई है इसका निर्णय कैसे होगा ? क्योंकि जो चीज दिखती नहीं है उसके सद्भाव या अभाव का निर्णय करना अशक्य है। आचार्य कहते हैं यह बात सर्वथा एकान्त रूप से घटित नहीं हो सकती है कि अदश्य का अभाव न माना ज मृतक मनुष्य के शरीर की अदृश्य भी चेतना निकल गई है इस बात का निर्णय कुशल वैद्य सहज ही
1 अतिशायनादित्यस्य । (ब्या० प्र०) 2 पाषाणात 3 आत्मनः। 4 द्रव्यभावरूपम्। 5 सौगतादिमतं वा। (ब्या० प्र०) 6 अकलङ्कस्य = परमसर्वज्ञस्याकलङ्कदेववचसो वा।
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