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अष्टसहस्री
[ कारिका ३'पुनस्तस्याज्ञत्वलक्षणस्वभावान्तरप्रतिषेधः सिद्धो यतोसौ ज्ञस्वभाव एव स्यात् ! सर्वश्चार्थस्तस्य विषयः स्यात् ? ततस्तं 'क्रमेतव ? इति चेत् चोदना बलाद्भूताद्य शेषार्थज्ञानान्यथानुपपत्तेः । सोय चोदना हि भूतं भवन्तं भविष्यन्तं विप्रकृष्टमित्येवंजातीयकमर्थमवगमयितुमलं पुरुषविशेषानिति स्वयं प्रतीयन् सकलार्थज्ञानस्वभावतामात्मनो न प्रत्येतीति 1°कथं स्वस्थः ? तच्च न ज्ञानमात्मनो भिन्नमेव मीमांसकस्य कथञ्चिदभेदोपग मादन्यथा12 13मतान्तरप्रसङ्गात् । ततो नाज्ञस्वभावः पुरुषः क्वचिदपि14 विषये, सर्वविषये चोदनाज्ञानो
वाले दोनों में से किसी को भी संशय नहीं है क्योंकि एक तो अपनी वस्तु को सत्य मान चुका है और दूसरा असत्य मान चुका है। इसलिये सर्वज्ञवादी और सर्वज्ञाभाववादी सभी जनों के यहाँ संशय को स्थान नहीं है। अब जो सर्वज्ञ साधक प्रमाणों से निश्चित सिद्ध हो चुके हैं वे सर्वज्ञ भगवान् संसारी प्राणियों के स्वामी हैं ऐसा समझना चाहिये ।
[ मीमांसक आत्मा को ज्ञान स्वभाव नहीं मानता है उसका उत्तर ] ज्ञान स्वभाव आत्मा के कोई वस्तु अगोचर नहीं है जिसे कि वह सर्वज्ञ न जान सके क्योंकि उस सर्वज्ञ के स्वभावांतर-अज्ञत्व लक्षण का प्रतिषेध है* ।
शंका-उस सर्वज्ञ के अज्ञत्व-अज्ञानावस्था लक्षण स्वभावांतर का प्रतिषेध कैसे सिद्ध है कि जिससे वह ज्ञान स्वभाव ही हो सके और सभी पदार्थ उसके विषय हो सकें एवं उन पदार्थों को वह जान लेवे यह बात कैसे सिद्ध है ?
___समाधान-यदि ऐसा कहो तो वेदवाक्य के बल से भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल के सभी पदार्थों के ज्ञान की अन्यथानुपपत्ति होने से आत्मा ज्ञान स्वभाव ही सिद्ध है। "वेदवाक्य ही भूत, भविष्यत् और वर्तमान कालवर्ती विप्रकृष्ट-दूरवर्ती इसी प्रकार के पदार्थों को बतलाने में समर्थ है" इस प्रकार से आप मीमांसक पुरुषविशेषों का स्वयं अनुभव करते हुये तथा संपूर्ण पदार्थों को जानने के स्वभाव रूप ज्ञान स्वभाव आत्मा का ही है इस प्रकार श्रद्धा न करते हुये स्वस्थ कैसे हैं ? अर्थात् वेदवाक्य से ही संपूर्ण त्रैकालिक पदार्थों का ज्ञान किसी जीवात्मा को होता है किन्तु आत्मा ज्ञान स्वभाव वाला नहीं है ऐसा मानते हुये आप स्वस्थ नहीं हैं किन्तु अस्वस्थ ही हैं।
और वह ज्ञान आत्मा से भिन्न ही हो ऐसा नहीं है मीमांसक के यहाँ उसमें कथंचित् अभेद स्वीकार किया गया है अन्यथा यदि आप मोमांसक आत्मा से ज्ञान को सर्वथा भिन्न मानोगे तब तो योग के मत का प्रसंग आ जावेगा क्योंकि नैयायिक तो आत्मा से ज्ञान को सर्वथा भिन्न ही मानते हैं
1 सर्वज्ञस्य । 2 जानीयात्। 3 वेद । (ब्या० प्र०) 4 जैनः। 5 भविष्यद्वर्तमानावादिपदेन ज्ञेयो। 6 ज्ञस्वभावस्वाभावे। 7 आत्मा ज्ञस्वभाव एव साध्यः। 8 मीमांसकः। 9 चोदना सकलं जानाति, आत्मा तु न जानातीति बदन् । 10 सकलविषयं ज्ञानं भवतु ज्ञानस्वभावता तु कथमात्मनः इत्युक्ते आह । (ब्या० प्र०) 11 मीमांसकस्यापि । 12 सर्वथा भेदे। 13 मतांतरं योगम् । 14 भूताद्यशेषार्थे ।
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