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तत्त्वोपप्लववाद ] प्रथम परिच्छेद
[ २०५ स्व'कारणवैकल्यादित्युभयसंस्पर्शिप्रत्ययोत्पत्तेः । क्वचिद्रे मरीचिकायां जलज्ञाने स्वकारणवैकल्याबाधकप्रत्ययानुत्पत्तिप्रसिद्धरभ्यासदेशे तत्कारणसाकल्याबाधकज्ञानोत्पादात् ।
[ अर्थज्ञानानंतरमेव बाधानुत्पत्ति: ज्ञानस्य प्रमाणतां ज्ञापयति सर्वदा वा ? ] 'किञ्चार्थसंवेदनानन्तरमेव बाधानुत्पत्तिस्तत्प्रामाण्यं व्यवस्थापयेत् सर्वदा वा ? न तावत्प्रथम
विक माना है। अब ज्ञान में यथार्थता को ग्रहण करने से बाधा की उत्पत्ति नहीं है इस बात का निर्णय आप अन्य प्रमाण से मान रहे हैं। पुनः ज्ञान वास्तविक है इस बात को आप अन्य प्रमाण से ही क्यों न मान लीजिये, तब तो बाधा की अनुत्पत्ति हेतु से क्या कार्य सिद्ध होगा ? अर्थात् इससे कुछ भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा क्योंकि बाधा की उत्पत्ति न होने से यथार्थ ग्रहण निबंधनत्व स्वतः ही निश्चित नहीं होता है । अन्यथा संदेह का ही अभाव हो जावेगा, किन्तु संदेह तो देखा जाता है। उसी का स्पष्टीकरण करते हैं
हम लोगों को इस विषय में यथार्थ ग्रहण करने से क्या बाधा की उत्पत्ति नहीं है ? अथवा अपने बाधक कारणों की विकलता से बाधा की उत्पत्ति नहीं है ? इस प्रकार से उभय संस्पशि-संशय ज्ञान की उत्पत्ति देखी जाती है। कहीं दूर स्थान पर मरीचिका में जल ज्ञान के होने पर अपने बाधक कारणों की विकलता से बाधक ज्ञान की उत्पत्ति न होना प्रसिद्ध है और समीप देश में अपने बाधक कारणों की सकलता-पूर्णता होने से बाधक ज्ञान उत्पन्न होता हुआ देखा जाता है। जैसे किसी ने दूर से चमकती रेत को देखकर उसे जल समझ लिया किंतु वहाँ से पानी मंगाने का, स्नान आदि करने का उसे प्रसंग नहीं आया अतः उसमें बाधक कारण न मिलने से उस मिथ्याज्ञान में भी बाधा नहीं आती है और कोई मनुष्य निकट के तालाब के एक तरफ सूखी हुई चमकती रेत देख कर उसमें पानी भरने के लिये चल पड़ा, गया तो लज्जित होकर वापस आया, खिन्न होकर सोचने लगा कि मेरा जल ज्ञान गलत निकल गया । अतः इस व्यक्ति को निकट में बाधा के उत्पन्न हो जाने से जल ज्ञान में सचाई नहीं रही अत: हम लोगों को "बाधा की अनुत्पत्ति" में संशय बना ही रहता है। [ बाधा की अनुत्पत्ति पदार्थ के ज्ञान के अनंतर ही ज्ञान की प्रमाणता को बतलाती है या हमेशा ही ? पुनरपि
तत्त्वोपप्लववादी दूसरी तरह से प्रश्न कर रहे हैं ] दूसरी बात यह है कि अर्थ ज्ञान के अनंतर ही बाधा का न होना उस ज्ञान की प्रमाणता को व्यवस्थापित करता है अथवा सर्वदा ही बाधा की उत्पत्ति का न होना ? प्रथम विकल्प तो संभव नहीं है क्योंकि किसी मिथ्याज्ञान में भी अनंतर ही बाधा की उत्पत्ति नहीं देखी जाती है। किसी ने सीप को चाँदी समझा और तत्काल ही उसे गलाने, जेवर आदि बनाने का प्रसंग नहीं आया तो भी इस मिथ्याज्ञान को सच्चा नहीं माना जाता है ।
1 तद्देशोपसर्पणरूपबाधककारणस्य । 2 स्वकारणवैकल्यावस्थानं प्रदर्शयति । (ब्या० प्र०) 3 समीपे। 4 तत्त्वोपप्लववादी।
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