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अष्टसहस्री
[ कारिका ३गस्य वाक्यार्थत्वप्रसङ्गात् । नियुक्तोहमनेन वाक्येन यागादाविति प्रतिपत्तः प्रतीतेः । 'इष्टस्तादृशो नियोगो भावनास्वभावः शुद्धकार्यादिरूपस्यैव नियोगस्य निराकरणादिति 'चेन्न तस्यापि प्रधानभावार्पितस्य' करोत्यर्थादिविशेषणस्य वाक्यार्थत्वोपपत्तेः । निरपेक्षस्य' तु करोत्यर्थस्यापि वाक्यार्थत्वानुपपत्तेः । न च करोत्यर्थ एव वाक्यार्थ इति युक्तम्-यज्याद्यर्थस्यापि वाक्यार्थतयानुभवात् । [ भाट्टाः करोति सामान्य क्रियामेव वाक्यस्यार्थं मन्यते, किंतु जैनाचार्याः भवति क्रियां सामान्यरूपां
सर्वव्यापिनी मत्वा दोषारोपणं कुर्वति ] करोतिसामान्यस्य सकलयज्यादिक्रियाविशेषव्यापिनो नित्यत्वाच्छब्दार्थत्वम्-नित्या:11 शब्दार्थसम्बन्धा इति वचनात् । न पुनर्यज्यादिक्रियाविशेषास्तेषामनित्यत्वाच्छब्दार्थत्वाऽवे
जैन-ऐसा नहीं कहना । क्योंकि "करोति इस अर्थ आदि विशेषण से विशिष्ट, प्रधान भाव से विवक्षित वह नियोग भी वेदवाक्य का अर्थ हो जाता है किन्तु निरपेक्ष करोति क्रिया का अर्थ भी वेदवाक्य का अर्थ नहीं हो सकता है एवं “करोति" अर्थ ही वेद वाक्य का अर्थ है, यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि यज्यादि अर्थ भी वेदवाक्य के अर्थरूप से अनुभव में आते हैं। [ भाट्ट ने करोति क्रिया को सामान्य मानकर उसे ही वेदवाक्य का अर्थ माना है। उस पर जैनाचार्य "भवति"
क्रिया को सर्वव्यापी मानकर उसे वेद का अर्थ सिद्ध करते हैं ] भाट-सकल यज्यादि क्रिया विशेष में व्यापी "करोति" सामान्य नित्य है अतः वह शब्द का अर्थ है। क्योंकि "नित्याः शब्दार्थसम्बन्धाः" ऐसा वाक्य पाया जाता है किन्तु यज्यादि क्रिया विशेष वेद के अर्थ नहीं हैं क्योंकि वे अनित्य हैं वे वेदवाक्य के अर्थ घटित नहीं होते हैं।
जैन-ऐसा नहीं कहना-क्योंकि सकल यज्यादि क्रिया विशेषों में व्यापी यज्यादिक्रियासामान्य नित्य है वह भी वेदवाक्य का अर्थ हो सकता है इसमें कोई विरोध नहीं है।
भाट्ट-सभी क्रियाओं में व्यापी होने से "करोति" सामान्य ही शब्द का अर्थ है न कि यज्यादि विशेष ।
जैन-यदि ऐसा मानते हो तो भवन-क्रिया-रूप “सत्ता-सामान्य" भी शब्द-वेदवाक्य का अर्थ हो जावे क्या बाधा है ? करोति क्रिया में भी उसका सद्भाव है । क्योंकि महाक्रिया में सामान्य
1 भाद्र आह "भो जैन"। 2 शब्दव्यापार इत्युक्ते शब्दभावनैवेति भावनास्वभावः। 3 यागमात्र । (ब्या० प्र०) 4 जैनः। 5 विवक्षितस्य । 6 बसः। 7 विशेषणे । (ब्या० प्र०) 8 पचनादि । (ब्या० प्र०) 9 भाट्टो वदति । 10 सूत्राम्नाता महिर्षिभिः सूत्राणां सानुतंत्राणां भाष्याणां च प्रणेतृभिः । तंत्राणां-विषमपदव्याख्यानमनुतंत्रं तेन सह वर्तन्ते यानि सूत्राणि तानि सानुतंत्राणि तेषां । (ब्या० प्र०) 11 "नित्याः शब्दार्थसम्बन्धास्तत्राम्नाता महर्षिभि । सूत्राणां सानुतंत्राणां भाष्याणां च प्रणेतृभिः" । 12 वाक्यार्थता। 13 शब्दार्थत्वाघटनात् इति पा० । (ब्या० प्र०)
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