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शून्यवाद ]
प्रथम परिच्छेद
[ १८६
तस्मान्नानात्मसिद्धम् । 'अन्यथा परस्यापि ' न सिद्ध्येत् अतिप्रसङ्गादेव । तथा हि । - यत् प्रमाणमन्तरेण सिद्धं तत्परस्यापि न सिद्धम् । यथा तदनभिमततत्त्वम् । प्रमाणमन्तरेण सिद्धं च परस्यानुमानम् । तन्न सिद्धं स्वयमनभिमततत्त्वसिद्धिप्रसङ्गात् ।
[ चार्वाकः इन्द्रियप्रत्यक्षेण सर्वत्र सर्वज्ञाभावं कथं साधयेत् ? अस्य विचारः क्रियते । ] 'दि स्वयमेकेन प्रमाणेन सर्वं सर्वज्ञरहितं पुरुषसमूहं संविदन्त एवात्मानं निरस्यन्तीति व्याहतमेतत् अतिप्रसङ्गादेव । " स्वयमनिष्ट ह्यतीन्द्रियप्रत्यक्षमेषां " स्यात्, 2 इन्द्रियप्रत्यक्षेण
अनभिमत तत्त्व | और पर का अनुमान, प्रमाण के बिना सिद्ध है इसलिए सिद्ध नहीं हैं अन्यथा स्वयं को अनभिमत तत्त्व की सिद्धि का प्रसंग आ जावेगा । अर्थात् चार्वाक के लिये अनभिमत तत्त्व अनुमान और पर लोकादि हैं उनकी भी सिद्धि का प्रसंग आ जावेगा ।
भावार्थ - यहाँ चार्वाक ने कहा कि हम स्वयं अनुमान तो मानते नहीं हैं किन्तु बौद्ध, वैशेषिक आदिकों ने तो अनुमान प्रमाण माना ही है हम उन्हीं के अनुमान को उनसे लेकर शस्त्र बनाकर उन्हीं लोगों के मान्य अनुमान, तर्क, आगम आदि प्रमाणों को और सर्वज्ञ, ईश्वर, कपिल, बुद्ध के अस्तित्व को धराशायी कर देते हैं अतः हमारे ऊपर कोई दोषारोपण नहीं कर सकता है। तब जैनों ने प्रश्न किया कि भाई ! आप हम लोगों के द्वारा स्वीकृत अनुमान को ही लेकर यदि सर्वज्ञ आदि का अभाव कर रहे हो तब यह तो बताओ कि वह अनुमान हम और आप लोगों को प्रमाणीक है या नहीं ? यदि प्रमाणीक है तब तो प्रमाणीक वस्तु जैसे हमें प्रमाणीक है वैसे तुम्हें भी उसे प्रमाणीक ही मानना पड़ेगा क्योंकि मिश्री को मिश्री अमृत को अमृत जैसे हम कहते हैं वैसे ही आप भी तो कहते हैं और आपको भी उसका मधुर ही स्वाद आता है । यदि आप कहें कि वह अनुमान प्रमाण के बिना ही सिद्ध है अर्थात् अप्रमाणीक है तब तो हम लोग भी उसे प्रमाण की कोटि में कैसे रखेंगे और आप हमारे द्वारा मान्य समझ कर उसे लेकर उसी से सर्वज्ञ का अभाव कैसे करेंगे ? अतः भाई ! यदि आप स्वयं अनुमान को स्वीकार न करते हुए भी उस अनुमान से सर्वज्ञ का अभाव करते हैं तब तो आपको परलोक, आत्मतत्त्व, सर्वज्ञ आदि भी यद्यपि इष्ट नहीं है तो भी अनुमान के समान इन्हें भी मान लेना चाहिए पुनः आप नास्तिकवादी नहीं रहेंगे आस्तिकवादी ही बन जायेंगे ।
[ चार्वाक इन्द्रिय प्रत्यक्ष से सभी जगह सर्वज्ञ का अभाव कैसे करेगा ? इस पर विचार किया जाता है ]
इस प्रकार से ये चार्वाक स्वयं एक इन्द्रियप्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा सभी पुरुष समूह को सर्वज्ञ रहित समझते हुए - जानते हुए ही अपना-इन्द्रिय प्रत्यक्ष रूप एक प्रमाणवादी के स्वरूप का ही निरसन
1 प्रमाणमन्तरेण । 2 जैनस्य | 3 तस्मात् । (ब्या० प्र०) 4 अन्यथा | 5 चार्वाकेणानभिमतं तत्त्वमनुमानं परलोकादिश्च तस्य सिद्धिप्रसङ्गात् । 6 चार्वाकाः । 7 इन्द्रियप्रत्यक्षेण । 8 इन्द्रियप्रत्यक्षैकप्रमाणवादिस्वरूपम् । 9 विरुद्धं । ( ब्या० प्र० ) 10 स्वयमस्वीकृतमनभिप्रेतं वा । 11 चार्वाकाणाम् । 12 अन्यथा |
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