________________
१६० ] अष्टसहस्री
[ कारिका ३भेदाभेदप्रतीतिरिति चेत् सिद्धं तस्यकथञ्चिदनित्यत्वम्, अनित्यस्वधर्माव्यतिरेकात्' । 'न ह्यनित्यादभिन्नं नित्यमेव युक्तमनित्यस्वात्मवत्, सर्वथा नित्यस्य क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियाविरोधाच्च । तदनित्यं सामान्यं, विशेषादेशाच्छब्दवत् । तत एवानेकं तद्वत् ।
[ करोति क्रिया एकास्तीति भाट्टो वदति तस्य परिहारः ] 'करोतीति स्वप्रत्ययाविशेषादेकं करोतिसामान्यं सदिति स्वप्रत्ययाविशेषादेकसत्तासामान्यवदिति चेन्न, सर्वथा स्वप्रत्ययाविशेषस्या सिद्धत्वात् । प्रतिकरीत्यर्थ व्यक्ति करोतीति=प्रत्ययस्य विशेषात् प्रतिसद्वयक्ति सदितिप्रत्ययवत् । तद्वयक्तिविषयो विशेषप्रत्यय
जैन-यदि ऐसा कहो तो उस प्रत्यभिज्ञान को कथंचित्-अनित्यत्व सिद्ध ही हो गया। क्योंकि वह अनित्य रूप अपने धर्म से अभिन्न है। और अनित्य से अभिन्न होकर नित्य ही है ऐसा कहना युक्त नहीं है, अनित्य के स्वरूप के समान । क्योंकि सर्वथा नित्य में क्रम अथवा युगपत् से अर्थ क्रिया का विरोध है।
इसलिए वह सामान्य अनित्य है क्योंकि उसमें विशेषादेश-पर्यायाथिक नय की अपेक्षा से भेद का कथन होता है, शब्द के समान । और उसी प्रकार से शब्द के समान वह सामान्य अनेक भी है।
[ करोति क्रिया एक है ऐसा भाट्ट कहता है उसका परिहार ] भाट्ट-"करोति" इस प्रकार से स्वप्रत्यय-अपने ज्ञान से समान होने के करोति सामान्य एक है जैसे "सत" इस अपने ज्ञान सामान्य से सत्ता सामान्य एक है।
जैन-नहीं सर्वथा स्वप्रत्यय से समानता असिद्ध है अर्थात् पर्यायाथिक नय से भेद का कथन भी देखा जाता है । करोति अर्थ के व्यक्ति-व्यक्ति के प्रति को-'प्रतिकरोति अर्थव्यक्ति' कहते हैं अर्थात् करोति अर्थ के व्यक्ति व्यक्ति के प्रति करता है । इस प्रकार से ज्ञान विशेष होने से (घटकरण पट करणादि ज्ञान) भेद हैं जैसे 'सत्' 'सत्' इस प्रकार से व्यक्ति–व्यक्ति के प्रति सत् ज्ञान में भेद देखा जाता है।
भाट्ट-उन व्यक्ति को विषय करने वाला तो विशेष ज्ञान है।
जैन-ऐसा कहो तो यदि वे घटपटादि रूप व्यक्तियाँ-भिन्न-२ वस्तुएं करोति सामान्य से सर्वथा भिन्न प्रतिपादित की गई हैं तब तो आप मीमांसक यौगमत में प्रवेश कर जावेंगे। यदि आप कहो कि वे व्यक्तियाँ करोति सामान्य से कथंचित् अभिन्न हैं तब तो सामान्य विशेष जान को विषय
1 भेदादभेद प्रतीतिः इति पा० । (ब्या० प्र०) 2 जैनः । 3 अव्यतिरेक: अभेदः। 4 सन्दिग्धा नै कान्तिकत्ते सत्याह जैनः। 5 स्वस्वरूपवत् । (ब्या० प्र०) 6 पर्यायाथिकनयाभेदकथनात। 7 घटं करोति पटं करोतीत्यादी। 8 अभेदात् । (ब्या० प्र०) 9 हेतोः। 10 पर्यायाथिकनयेन भेदस्यारि कथनात। 11 करोत्यर्थस्य व्यक्ति प्रतीति प्रतिकरोत्यर्थव्यक्ति। 12 घटकरणपटकरणादिप्रत्ययस्य। 13 भेदात् । 14 घटकरणं पटकरणमिति ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org -