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प्रथम परिच्छेद
भावनावाद ]
[ १४५ प्रतिनियत 'सामग्रीवशात् प्रतिनियतार्थव्यवच्छेदकतया तस्योत्पत्तेः प्रतिकर्मव्यवस्थानसिद्धेः साकारज्ञानवादिनामपि तथाभ्युपगमस्यावश्यम्भावित्वात् । 'अन्यथा सकलसमानाकारव्यवस्थापकत्वा नापत्तेः "संवेदनस्य "तदसिद्धेः । ततोऽसामान्याकारा बुद्धिः सामान्यावभासिनी 1कुतश्चिदस्पष्टा कस्मिंश्चिद्वस्तुन्यविशेषाकारा4 च विशेषावभासिनीति दूरे सामान्यस्य प्रतिभासोऽस्पष्ट: स्याद्विशेषस्य च "कस्यचित्-"सकलविशेषरहितस्य सामान्यस्य प्रतिभासासंभवात् । 'न चोर्दूवतासामान्ये विशेषे च 1 प्रतिनियतदेशत्वादौ प्रति
एवं अर्थाकार-सौगताभ्युपगत ताप्य सहित ज्ञान भी नहीं है क्योंकि ज्ञान को हमने निराकार माना है तथा उस विषय में प्रतिभासमान आकार पदार्थ के धर्म हैं। हम यदि ज्ञान को निराकार मानते हैं तो प्रतिकर्म व्यवस्था विरुद्ध हो जावेगी ऐसा भी आए सौगत नहीं कह सकते हैं क्योंकि प्रतिनियत सामग्री के निमित्त से प्रतिनियत पदार्थ को ग्रहण करने रूप से वह ज्ञान उत्पन्न होता है अत: प्रतिकर्म की व्यवस्था सिद्ध है। साकारज्ञानवादी सौत्रांतिक के यहाँ भी उस प्रकार से ज्ञान को निराकार रूप स्वीकार करना अवश्यंभावी है । अर्थात् बौद्ध ज्ञान को पदार्थ से उत्पन्न होने वाला मानते हैं एवं पदार्थ के आकार को धारण करके ही वह ज्ञान पदार्थ को जानता है ऐसा कहते हैं किन्तु भाट्ट इस तदुत्पत्ति और तदाकारता का खण्डन कर देते हैं। अन्यथा प्रतिनियत सामग्री के निमित्त से प्रतिनियत व्यवच्छेदक का अभाव मानने पर सम्पूर्ण नील पीतादिज्ञानों में तुल्याकार प्राप्त हो जाता है। अतः सकल समानाकार की व्यवस्था कर देने की आपत्ति आ जावेगी पुनः संवेदन में वह प्रति कर्म व्यवस्था असिद्ध हो जावेगी।
__ इसलिए असामान्याकार ज्ञान सामान्यावभासी किसी दृष्टअदृष्ट कारण समूह से अस्पष्ट है और किसी वस्तु में अविशेषाकार-सामान्याकार ज्ञानविशेषावभासी किसी दृष्टादृष्ट कारण कलाप से अस्पष्ट है । इस प्रकार से दूर में सामान्य का प्रतिभास अस्पष्ट है और किसी विशेष का प्रतिभास भी अस्पष्ट है क्योंकि सकल विशेष से रहित सामान्य प्रतिभासित ही नहीं होता है।
1 अदृष्टादि । (ब्या० प्र०) 2 भाट्टः। 3 ग्राहकतया। 4 ता । (ब्या० प्र०) 5 सौत्रान्तिकानाम् । 6 प्रतिनियतसामग्रीवशात्प्रति नियतार्थव्यवच्छेदकस्य ज्ञानस्याङ्गीकारस्य । 7 प्रतिनियतसामग्रीवशात् प्रतिनियतव्यवच्छेदकत्वाभावे सकलनीलपीतादिनिर्भासानां तुल्याकारत्वमापद्यते संवेदनस्य (विवक्षितनीलाकारवदशेषनीलाकारग्रहणप्रसक्तेः) । 8 ज्ञानस्य समस्वसदशघटानां । (ब्या० प्र०) १ तथांगीकारे निराकरोति भाद्रः। (ब्या० प्र०) 10 व्यवस्थापकत्वापत्तेरिति पाठान्तरम् । 11 प्रतिकर्मव्यवस्थापनस्य सिद्धिर्न स्यात् । 12 योग्यतावशात्प्रतिनियतार्थव्यवस्था यतः । 13 दृष्टादृष्टकारणकलापात् । 14 सामान्याकारा। 15 पुरुषस्य । (ब्या० प्र०) 16 कोपि विशेषो दूरे न प्रतिभासते इत्युक्ते माह। 17 सौगताभिप्रायमनुद्याह। 18 स्थाणपुरुषोचितदेशः । आदिशब्दात्प्रकाशान्धकारकलुषवेलाश्च गृह्यन्ते।
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