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अष्टसहस्री
[ कारिका ३च प्रतिपन्नस्यैव 'प्रतिषेधेऽनवस्थानुषङ्गात् । युगपत्सकलपररूपप्रतिषेधे परस्पराश्रयानुषङ्गात् । सिद्धे सकलपररूपप्रतिषेधे प्रतिपित्सितविधिसिद्धि स्तत्सिद्धौ च तत्परिहारेण तत्प्रतिपत्तिपूर्वकसकलपररूपप्रतिषेधसिद्धिरिति ।
[ सर्वथा विधिरेव प्रवृत्यंगं नास्तीति प्रतिपादयन् भाट्टो विधिवादं परिहरति ] 'तदेतदनालोचिताभिधानम्--मण्डनमिश्रस्य । सर्वथा विधेरपि प्रवृत्त्यङ्गतानुपपत्तेः । सर्वो हीष्टे वस्तुनि प्रवर्तितुमना जनोनिष्टपरिहारं 'तत्रान्वेषते--अन्यथानिष्टेपि प्रवृत्ती समीहितव्याघातप्रसक्ते:10 । अनिष्टप्रतिषेधश्च प्रत्यक्षादिवत्11 कुतश्चिद्वाक्यादपि शक्यः
यदि आप कहें कि पररूप को स्वयं बिना जाने ही उसका प्रतिषेध करते हैं ऐसा कहना तो शक्य नहीं है अन्यथा प्रतिषेध विषयशून्य-निविषयक हो जावेगा। यदि आप कहो कि हम पर रूप को जान करके उसका क्रम से निवारण करते हैं तो भी पर रूप का निश्चय-ज्ञान होने पर भी अन्य पररूप के प्रतिक्षेप-निषेध की अपेक्षा रहेगो ही और उस अन्य पररूप को भी जानकर उसका निषेध करने पर तो अनवस्था का प्रसंग आ ही जावेगा।
यदि कहो कि एक साथ सभी पर रूप का प्रतिषेध करते हैं तब तो परस्पराश्रय दोष का प्रसंग आ जावेगा। सकल पररूप का प्रतिषेध सिद्ध होने पर प्रतिपित्सित-जानने योग्य का सद्भाव सिद्ध हो जावेगा एवं जानने योग्य विधि का सद्भाव सिद्ध होने पर उसका परिहार करके उसकी प्रतिपत्ति-ज्ञान पूर्वक सकल पररूप के प्रतिषेध की सिद्धि होगी।
[ सर्वथा विधि भी प्रवृत्ति में हेतु नहीं है ऐसा कहते हुए भाट्ट विधिवाद का परिहार करते हैं ]
भाट-आप मंडनमिश्र (विधिवादी) का यह सब कथन अविचारित ही है क्योंकि सर्वथा विधि भी प्रवृत्ति का अंग नहीं हो सकती है। इष्ट वस्तु में प्रवृत्ति करने की इच्छा रखने वाले सभी जन वहाँ इष्ट में अनिष्ट का परिहार खोजते ही हैं, अन्यथा यदि ऐसा न मानो तो अनिष्ट में भी प्रवत्ति के हो जाने पर सभी के हित-इष्ट के व्याघात का प्रसंग आ जावेगा एवं प्रत्यक्षादि के समान अनिष्ट का प्रतिषेध भी किन्हीं वेदवाक्यों से जानना शक्य है क्योंकि केवल विधि का ज्ञान ही अन्य के प्रतिषेध-निषेध की प्रतिपत्ति-ज्ञान रूप है अर्थात् केवलभूतल का ज्ञान होने से ही घट के अभाव का
1 प्रतिषेधे नानवस्थाप्रसङ्गादिति पाठान्तरम् । 2 प्रतिपत्तुमिष्ट । (ब्या० प्र०) 3 सद्भाव । 4 प्रतिपित्सितविधिसिद्धौ। 5 प्रतिपित्सितवस्तुनिराकरणेन तत्परिज्ञानपूर्वकसर्वान्यरूपनिषेधसिद्धिः। 6 सकल पररूपेषु विधिर्नास्तीति विधिपरिहारस्तेन । (ब्या० प्र०) 7 भावनावादी भाद्रः। 8 विधिवादिनः। 9 इष्टे । 10 अनिष्टप्रतिषेधो ज्ञातूमशक्यो नन्वित्याशंकायामाह । (ब्या० प्र०) 11 प्रत्यक्षादेरिव ।
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