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अष्टसहस्री
[ कारिका ३न 'चैवं पुरुष व्यापारे शब्दव्यापार वद्धात्वर्थे च पुरुषव्यापारवत् फले धात्वर्थो भावनानुषज्यते -"तस्य 'शुद्धस्य सन्मात्ररूपतया विधिरूपत्वप्रसङ्गात् । तदुक्तम् ।-- "सन्मानं भावलिङ्ग स्यादसंपृक्तं तु कारकै:10 । धात्वर्थ:11 केवल:12 शुद्धो13 भाव इत्यभिधीयते ॥ 14तां 15प्रातिपदिकार्थ16 च धात्वर्थं च प्रचक्षते । सा सत्ता सा महानात्मा17 यामाहुस्त्वतलादयः॥"
इति च 1 प्रतिक्षिप्तश्चैवंविधो विधिवादो नियोगवादिनैवेति नास्माकमत्राति
[ अर्थात् वह धात्वर्थ सन्मात्ररूप है या यजनादि रूप है अथवा क्रियारूप है ? इत्यादि रूप से भाट्ट
तीन विकल्प करके क्रम से दूषण दिखाते हैं। ] यदि धात्वर्थ को शुद्ध सन्मात्र मानो तो वह विधिरूप ही सिद्ध होगा। कहा भी है
श्लोकार्थ-जो कारकों के संपर्क से रहित सन्मात्र, भावलिंग है एवं केवल-भिन्न अर्थ से रहित शुद्ध (अपने अन्तर्गत विशेषों से रहित) भाव है वह धात्वर्थ कहलाता है ।।१।।
श्लोकार्थ-ज्ञानीजन प्रातिपदिक अर्थ को और धातु के अर्थ को सत्ता कहते हैं तथा वह सत्ता ही महान् आत्मा (परब्रह्म) स्वरूप है। उस सत्ता को ही "त्व और तल्" आदि प्रत्यय द्योतित करते हैं ॥२॥
प्रातिपदिक शब्द का अर्थ-पाणिनि व्याकरण में धातु और प्रत्यय से रहित अर्थवान् शब्द को "प्रातिपदिक" कहते हैं एवं कातंत्रव्याकरण में "धातु विभक्तिवर्ण्यमर्थवल्लिगं" सूत्र से उसे लिंग सज्ञा है एवं जैनेन्द्र व्याकरण में इसे "मृत" संज्ञा दी है।
इस प्रकार के विधिवाद का नियोगवादी के द्वारा निरसन कर दिया गया है अतः हम भावनावादी भाट्टों को इस विधिवाद के निराकरण करने में विशेष आदर नहीं है। यदि आप कहें कि सन्मात्र से भिन्न यजनादि रूप ही धात्वर्थ है तब तो वह भी प्रत्यय के अर्थ से शून्य होने से किसी अग्निहोत्रादि वाक्य से प्रतीति में नहीं आता है प्रत्युत प्रत्यय सहित ही वह धातु का अर्थ उस वाक्य से जाना जाता है। अर्थात प्रत्ययार्थ विशेषणभत का ही उससे ज्ञान होता है।
1 धात्वर्थस्य फलजनकत्वप्रकारेण । 2 कपुस्तके पुरुषव्यापारः इति प्रथमान्तेन पाठः । 3 स्वेन क्रियमाणे पुरुषव्यापारे शब्दव्यापारो यथा शब्दभावना। (ब्या० प्र०) 4 यथा शब्दव्यापारः। 5 पुरुषव्यापारे शब्दव्यापारो यथा धात्वर्थे पुरुषव्यापारो भावना तथा फले धात्वर्थो भावना न । 6 धात्वर्थस्य। 7 स हि धात्वर्थः सन्मात्ररूपो वा यजनादिरूपो वा क्रियारूपो वेति विकल्पत्रयं मनसि कृत्वा क्रमेण दूषयति भाट्टः । 8 भाव इति निश्चेयम् । 9 विधिज्ञापकं । (ब्या० प्र०) 10 यतः। (व्या० प्र०) 11 यागादिविशेषणरहितः । (व्या० प्र०) 12 अर्थान्तररहितः। 13 स्वान्तर्गतविशेषरहितः । 14 सत्ताम् । 15 विभक्त्यादिरहितानामर्थः । (ब्या० प्र०) 16 अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकमिति पाणिनि कृता शब्दानां संज्ञा। 17 परब्रह्म। 18 शुद्धधात्वर्थरूप । (ब्या० प्र०) 19 एवं नियोगवादिना धात्वर्थभावनावादः प्रतिक्षिप्तः तथा विधिवादः प्रतिक्षिप्तः। 20 भावनावादिनां विधिवादनिराकरणे।
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