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अष्टसहस्री
[ कारिका ३
प्रत्यक्षस्य हि प्रवर्तकत्वं प्रवृत्तिविषयोपदर्शकत्वमुच्यते। प्रवृत्तिविषयश्चार्थ'क्रियाकारी सलिलादिः । सा च तस्यार्थक्रियाकारिता भाविनी न साधनावभासिना' वेदनेन साक्षात्कत्तुं शक्या' 'तत्साक्षात्करणे प्रवृत्तिवैफल्यात् । ततोध्यक्षस्य प्रवर्तकत्वं बाध्यमानप्रतीतिकं 'कथमेवेति न शक्यं वक्तुम् । यदि पुनरर्थक्रियाकारिताऽनागतापि साधनावभासिनि 10वेदने प्रतिभातैव-"एकत्वाध्यवसायात् तदा शब्दादपि पुरुषस्य कार्यव्यापृत्तता3 1"तत एव प्रतिभातैवेति किं नानुमन्यते तथा सतिबुद्ध यारूढोर्थःशब्दस्य स्यादिति चेत्तथापि प्रत्यक्षस्य
सकती है यदि भावना अथवा प्रेरणा लक्षण अर्थ को साक्षात् करना मानोगे तब तो नियोग ही निष्फल हो जावेगा। इसलिए यह प्रतीति बाधित ही है।
भाट्ट-यह आपका कथन असमञ्जस ही मालूम पड़ता है क्योंकि अन्यत्र-प्रत्यक्षादि में भी यह बाध्यमान प्रतीति समान ही है इसका कारण यह है कि प्रवृत्ति के विषय को दिखलाना ही तो प्रत्यक्ष का प्रवर्तकत्व कहा गया है । एवं प्रवृत्ति के विषय जलादि हैं जो कि स्नान, पानादि रूप से अर्थक्रियाकारी हैं और वह जलादि की अर्थक्रियाकारिता भाविनी-भविष्यत् में होने वाली है । स्नानपान आदि क्रिया के साधन जलादि हैं, वे साधन जिस ज्ञान में झलकते हैं वह ज्ञान साधनावभासी है वह भाविनी अर्थक्रियाकारिता साधनावभासी प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा साक्षात् नहीं की जा सकती है। यदि आप भाविनी अर्थक्रियाकारिता को साक्षात् करना मानोगे तब तो उसमें प्रवृत्ति ही विफल हो जावेगी, इसलिए प्रत्यक्ष का प्रवर्तकत्व बाधित प्रतीति वाला कैसे है ? ऐसा भी आपको कहना शक्य नहीं है क्योंकि प्रत्यक्ष भी बाधित प्रतीति वाला ही है।
सौगत-अनागत-भविष्य में होने वाली भी अर्थक्रियाकारिता साधनावभासी प्रत्यक्ष ज्ञान में प्रतिभासित ही होती है क्योंकि भाविनी अर्थक्रियाकारिता और प्रत्यक्ष इन दोनों में एकत्व का ज्ञान हो रहा है अर्थात् दृश्य और प्राप्य में एकत्व का अध्यवसाय होता है। यहाँ दृश्य कहने से जल
1 स्नानपानादि । 2 सलिलादेः। 3 दृश्य-सलिलं । स्नानपानादिक्रियायाः साधनं जलादिः । (ब्या० प्र०) 4 प्रत्यक्षेण । 5 पुरुषस्य। (ब्या० प्र०) 6 भाविन्यर्थक्रियाकारिताया: प्रत्यक्षीकरणे सति । 7 बाध्यमानप्रतीतिकमेव इति शक्यं वक्तुं । इति पा० । (ब्या० प्र०) 8 कुत: ? यतो बाध्यमानप्रतीतिकमेवेति । १ हे सौगत त्वमेवं वदसि । 10 प्रत्यक्षे। 11 दृश्यप्राप्ययोः। दृश्यमित्युक्ते जलं प्राप्यमित्यर्थक्रिया, तयोरेकत्वाध्यवसायात् । दृश्ये जले भाविन्यर्थक्रियायाः सद्भावात् । (ब्या० प्र०) 12 भाविन्यर्थक्रियाकारिताप्रत्यक्षयोरक्याधारत्वात् 13 अनागतता। 14 पुरुषव्यापृततावस्थयोरेकत्वाध्यवसायादेव। 15 भवद्भिः सौगतः। 16 बौद्धः । 17 भाट्टः। 18 तवापि इति पा० । (ब्या० प्र०)
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