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[ कारिका ३
भावना' स्यात् । 2 एतेनोभय' व्यापाररूपो विधिरिति प्रत्याख्यातम् । तदनुभयव्यापाररूप स्तु' विधिविषय' स्वभावश्चेत् तस्य' वाक्य' कालेऽसन्निधानान्निरालम्बनशब्दवादप्रवेशः' । 'फल"स्वभावश्चेत् स'2 एव दोषः — तस्यापि तदाऽसन्निधानादन्यथा ॥ विधेरनवतारात् । निःस्वभावो विधिरिति कल्पनायां तु विधिर्वाक्यार्थ इति न किञ्चिद्वाक्यार्थ इत्युक्तं स्यात् ।
अष्टसहस्री
[ विधि को शब्द के व्यापार आदि रूप से ४ विकल्प रूप मानने में हानि ]
(५) यह विधि को शब्द का व्यापार रूप मानोगे, तब तो वह हमारे द्वारा मान्य शब्दभावना रूप ही सिद्ध होगी ।
(६) यदि पुरुष का व्यापार कहो तो वह ब्रह्म अर्थभावना रूप ( पुरुष भावना) ही होवेगा ।
(७) इसी कथन से उभय व्यापार रूप सातवें पक्ष का भी खंडन कर दिया गया है अर्थात् पूर्व में जैसे नियोग पक्ष का निराकरण करने में - क्रम से या युगपत् ? इत्यादि अनेक विकल्प उठाये हैं वे सभी यहां पर भी समझना चाहिये ।
(८) यदि उन दोनों के व्यापार से रहित अनुभय रूप कहो तब तो प्रश्न उठेंगे कि वह विधि विषय का स्वभाव है या फल का स्वभाव है या निःस्वभाव है ? यदि विषय का स्वभाव मानो तब तो "सर्वं वै खल्विदं ब्रह्म" इत्यादि वाक्य के काल में असंनिहित- निकट न होने से निरालंबन शब्दवाद (सौगत के अन्यापोहवाद ) में प्रवेश हो जावेगा ।
यदि फल स्वभाव मानो, तो भी अर्थ रहित फल का स्वभाव भी निरालंबन शब्दवाद ही हो जावेगा, क्योंकि वह विधि वेदवाक्य के समय विद्यमान नहीं है अन्यथा विधि का ( मनन, निदिध्यासन आदि का) अवतार ही नहीं होगा । यहाँ फल स्वभाव से ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति होना रूप अर्थ समझना चाहिये ।
तथा विधि को निःस्वरूप मानने पर तो "विधि वेदवाक्य का अर्थ है " ऐसा कहने पर तो "कुछ भी वेदवाक्य का अर्थ नहीं है" ऐसा ही कहा गया हो जावेगा, क्योंकि विधि तो स्वभाव से शून्य है । अर्थात् आपने ही तो विधि को स्वभाव से शून्य कह दिया है ।
पुनरपि ये प्रश्न उठेंगे कि वह विधि सत् रूप है या असत् रूप, उभय रूप है या अनुभय रूप ?
1 पुरुषभावना । 2 प्रत्येकपक्षद्वय निराकरणेन । 3 पर्यायेण युगपद्वेत्यादिना नियोगनिराकरणे प्रोक्तं दूषणमत्रापि ज्ञातव्यं दृष्टव्येत्यादिना । 4 तदुभयाव्यापाररूप इति वा पाठ: । 5 ब्रह्मदर्शनादि । 6 शब्दात्मव्यापाररहितो विधिरिति चेत् सोपि विषयस्वभावो वा स्यान्निः स्वभावो वा फलस्वभावो वेति क्रमेण दूषयति । 7 विषयस्वभावस्य विधेः । 8 सर्वं वै खल्विदं ब्रह्मेत्यादिवाक्यकाले । 9 सौगतमते निरालम्बन शब्दवादोभिप्रेतः । 10 ब्रह्मस्वरूपप्राप्तिः । (ब्या० प्र० ) 11 अर्थरहित: । 12 फलस्वभावस्य विधेः स एव निरालम्बनशब्दवादप्रवेशः । कस्मात् ? तदा वाक्यकाले विधेरसामीप्यात् । 13 मनननिदिध्यासनादिविधानस्य । ( व्या० प्र० )
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